महाशिवरात्रि भगवान शिव का परमप्रिय पर्व है, जिसे फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और साथ ही यह शिव उपासना के लिए सबसे उत्तम दिन माना जाता है। इस दिन शिव भक्त निर्जला व्रत, रात्रि जागरण और शिव पूजन करके भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं। महाशिवरात्रि 2025 में भारत में 26 फरवरी, बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का पावन पर्व विशेष श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि 2025 के शुभ मुहूर्त
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि में चार प्रहरों में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। प्रत्येक प्रहर में शिवलिंग का अभिषेक और पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। नीचे दिए गए समयानुसार पूजा करना शुभ माना गया है:
- प्रथम प्रहर पूजा समय: शाम 6:29 बजे से रात 9:34 बजे तक
- द्वितीय प्रहर पूजा समय: रात 9:34 बजे से मध्यरात्रि 12:39 बजे तक
- तृतीय प्रहर पूजा समय: मध्यरात्रि 12:39 बजे से सुबह 3:45 बजे तक
- चतुर्थ प्रहर पूजा समय: सुबह 3:45 बजे से सुबह 6:50 बजे तक
इन मुहूर्तों में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। भक्तजन रात्रि जागरण करते हुए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और शिव पुराण का पाठ करें।
महाशिवरात्रि के दिन श्रवण नक्षत्र और परिध योग का विशेष संयोग बन रहा है, जो शाम 5:08 बजे तक रहेगा। यह योग भगवान शिव की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
अगले दिन, 27 फरवरी को, व्रत का पारण सुबह 8:54 बजे के बाद किया जा सकता है। पारण से पूर्व भगवान शिव की आराधना और प्रसाद वितरण करें।
महाशिवरात्रि व्रत और पूजन विधि
1. प्रातः स्नान और संकल्प
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- गंगा जल से स्नान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- स्नान के बाद भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें:
“ॐ महादेवाय नमः। मैं भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प लेता/लेती हूँ। हे शिव! मेरी पूजा को स्वीकार करें और कृपा करें।” - घर के मंदिर में दीप जलाकर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
2. व्रत का पालन और रात्रि जागरण
- इस दिन निर्जला व्रत (बिना जल ग्रहण किए) रखना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।
- यदि स्वास्थ्य कारणों से निर्जला व्रत संभव न हो, तो फलाहार (फल, दूध, और सूखे मेवे) ग्रहण किया जा सकता है।
- व्रत में अन्न, तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन) और नशे से पूरी तरह दूर रहना चाहिए।
- शिव भक्त इस दिन रात्रि जागरण (पूरी रात शिव उपासना) करते हैं और “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हैं।
3. शिवलिंग का अभिषेक और पूजन
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर अभिषेक करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव को निम्नलिखित वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए:
- जल एवं गंगाजल – समस्त पापों का नाश करता है।
- दूध – सौभाग्य एवं समृद्धि प्रदान करता है।
- दही – कष्टों को दूर करता है।
- घी – स्वास्थ्य और शक्ति बढ़ाने वाला।
- शहद – मीठे वाणी और प्रेम की प्राप्ति के लिए।
- बेलपत्र – भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है और इससे समस्त दोष समाप्त होते हैं।
- भस्म (भभूत) – भगवान शिव का प्रमुख श्रृंगार है, यह मृत्यु भय को समाप्त करता है।
- चंदन – मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए।
- धतूरा और भांग – यह भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है और इससे भोग लगाया जाता है।
- फल एवं मीठा प्रसाद – जिससे सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
अभिषेक विधि
- सबसे पहले शिवलिंग का जल एवं गंगाजल से स्नान कराएं।
- इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से पंचामृत अभिषेक करें।
- पुनः गंगाजल से स्नान कराएं।
- बेलपत्र, भस्म, चंदन, धतूरा, भांग और फल अर्पित करें।
- दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती दिखाएं।
- “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
- शिवजी को मिठाई, फल और पंचामृत का भोग अर्पित करें।
- आरती करें और भगवान शिव से अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
4. शिव मंत्र का जाप
महाशिवरात्रि पर निम्नलिखित मंत्रों का जाप अत्यंत फलदायक होता है:
- महामृत्युंजय मंत्र
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
➝ यह मंत्र आयु वृद्धि, रोग नाश और भय से मुक्ति प्रदान करता है। - पंचाक्षरी मंत्र
“ॐ नमः शिवाय।”
➝ यह मंत्र भगवान शिव का सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्र है, जो मोक्ष प्रदान करता है। - शिव गायत्री मंत्र
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥”
➝ इस मंत्र का जाप करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
5. रात्रि को शिव पुराण और शिव कथा का पाठ
- महाशिवरात्रि की रात शिव पुराण, शिव चालीसा और शिव कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- इस रात भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की कथा भी सुनी और सुनाई जाती है।
- कुछ स्थानों पर भगवान शिव की बारात निकालने की परंपरा भी होती है।
6. अगली सुबह पारण और व्रत का समापन
- महाशिवरात्रि के अगले दिन सूर्योदय के बाद, विधिपूर्वक व्रत का पारण करें।
- सबसे पहले भगवान शिव को जल और प्रसाद अर्पित करें, फिर स्वयं अन्न या फलाहार ग्रहण करें।
- दान और सेवा करना इस दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। गरीबों, ब्राह्मणों और जरुरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
महाशिवरात्रि व्रत का महत्व
- महाशिवरात्रि का व्रत करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाने से कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- इस दिन रात्रि जागरण और मंत्र जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- महाशिवरात्रि व्रत करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और संतान प्राप्ति का योग बनता है।
समुद्र मंथन और भगवान शिव द्वारा विषपान की विस्तृत कथा
समुद्र मंथन की पृष्ठभूमि
पुराणों के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच शक्ति को लेकर एक घोर संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में असुरों ने देवताओं को पराजित कर दिया, जिससे देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई और वे अत्यंत कमजोर पड़ गए। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सहायता मांगी।
भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि यदि वे अमृत प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें असुरों के साथ मिलकर “समुद्र मंथन” करना होगा। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाना होगा। इस कार्य में असुरों को भी शामिल करना आवश्यक था, क्योंकि समुद्र मंथन के लिए अत्यधिक बल की आवश्यकता थी।
समुद्र मंथन की प्रक्रिया
समुद्र मंथन की तैयारी के लिए देवताओं ने असुरों को अमृत प्राप्ति का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में मिला लिया। सभी ने मिलकर मंदराचल पर्वत को मंथन के लिए समुद्र में स्थापित किया और वासुकी नाग को रस्सी की तरह लपेट लिया।
भगवान विष्णु ने कछुए (कूर्म अवतार) का रूप धारण किया और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया, ताकि वह समुद्र में डूब न जाए। इसके बाद देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन शुरू किया।
समुद्र मंथन से प्राप्त वस्तुएं
समुद्र मंथन के दौरान अनेक दिव्य और चमत्कारी वस्तुएं प्राप्त हुईं, जैसे:
- कामधेनु गाय – यह सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली गाय थी।
- उच्चैःश्रवा घोड़ा – यह एक दिव्य घोड़ा था, जिसे इंद्र ने प्राप्त किया।
- ऐरावत हाथी – यह सफेद रंग का दिव्य हाथी था, जिसे इंद्रदेव ने प्राप्त किया।
- कौस्तुभ मणि – यह एक अद्भुत रत्न था, जिसे भगवान विष्णु ने धारण किया।
- कल्पवृक्ष – यह एक दिव्य वृक्ष था, जो इच्छाएं पूरी करता था।
- लक्ष्मी देवी – समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी प्रकट हुईं, जिन्होंने भगवान विष्णु को अपना पति रूप में चुना।
- वरुणि देवी – यह मदिरा की देवी थीं, जिन्हें असुरों ने स्वीकार किया।
- धन्वंतरि ऋषि – ये अमृत कलश के साथ प्रकट हुए।
हलाहल विष का प्रकट होना
जब समुद्र मंथन अपनी चरम सीमा पर पहुंचा, तो अचानक समुद्र से एक भयंकर विष निकला, जिसे “हलाहल” कहा गया। यह विष इतना घातक था कि इसकी तीव्र ज्वाला से सम्पूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच गया।
- हलाहल के प्रभाव से जल, वायु और संपूर्ण वातावरण प्रदूषित होने लगा।
- देवता और असुर दोनों ही इस विष से भयभीत हो गए और सोचने लगे कि यदि इसे रोका नहीं गया, तो संपूर्ण सृष्टि नष्ट हो जाएगी।
- इस संकट को देखते हुए सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे।
भगवान शिव का विषपान और नीलकंठ नाम की उत्पत्ति
भगवान शिव ने करुणा दिखाते हुए इस भयंकर हलाहल विष को स्वयं ग्रहण करने का निश्चय किया।
- उन्होंने अपनी दोनों हथेलियों से इस विष को उठाकर पी लिया, लेकिन उसे निगला नहीं।
- उन्होंने विष को अपने कंठ में ही रोक लिया, ताकि वह उनके शरीर में न फैले।
- इस विष के प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और तभी से उन्हें “नीलकंठ” कहा जाने लगा।
- भगवान शिव की इस कृपा से संपूर्ण सृष्टि का विनाश टल गया और देवताओं-असुरों ने पुनः समुद्र मंथन जारी रखा।
महाशिवरात्रि और विषपान का संबंध
भगवान शिव द्वारा हलाहल विष के पान की यह घटना फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को घटित हुई थी। इसी कारण इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
- इस दिन भक्त भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करते हैं।
- “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त की जाती है।
- रात्रि जागरण और उपवास के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है।
भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की पौराणिक कथा
माता सती और उनके योगबल से शरीर त्यागने की कथा
भगवान शिव का विवाह सबसे पहले माता सती से हुआ था, जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। माता सती भगवान शिव की परम भक्त थीं और घोर तपस्या कर उन्होंने शिवजी को पति रूप में प्राप्त किया।
एक दिन प्रजापति दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। माता सती इस यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं और शिवजी से अनुमति मांगी। शिवजी ने उन्हें जाने से रोका, लेकिन माता सती अपने पिता के घर गईं।
यज्ञ स्थल पर पहुंचकर माता सती ने देखा कि उनके पिता दक्ष भगवान शिव का अपमान कर रहे हैं। यह सहन न कर पाने के कारण माता सती ने वहीं योगबल से अपने प्राण त्याग दिए।
माता पार्वती का जन्म और शिव की पुनः प्राप्ति की कामना
माता सती ने अगले जन्म में हिमालयराज और माता मेना के घर जन्म लिया और पार्वती के रूप में जानी गईं। जब वे बड़ी हुईं, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि वे अपने पूर्व जन्म में माता सती थीं और उनका पूर्व जन्म का संबंध भगवान शिव से था।
माता पार्वती ने भगवान शिव को पुनः अपने पति के रूप में प्राप्त करने का संकल्प लिया और कठोर तपस्या करने लगीं।
माता पार्वती की कठोर तपस्या
माता पार्वती की तपस्या अत्यंत कठिन थी—
- उन्होंने पर्वतों और जंगलों में जाकर घोर तप किया।
- कई वर्षों तक उन्होंने केवल पत्ते खाकर तपस्या की, और फिर जल का भी त्याग कर दिया।
- उनकी तपस्या इतनी कठिन हो गई कि देवता और ऋषि-मुनि भी आश्चर्यचकित हो गए।
- अंततः भगवान शिव उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए।
भगवान शिव ने माता पार्वती को परीक्षा में डाला
भगवान शिव ने माता पार्वती की भक्ति और प्रेम की परीक्षा लेने का निश्चय किया।
- वे एक ब्राह्मण के रूप में माता पार्वती के पास गए और बोले, “तुम इतनी कठोर तपस्या क्यों कर रही हो? शिवजी के रूप और उनकी वेशभूषा को देखो—वह श्मशान में रहते हैं, गले में सर्प धारण करते हैं और भस्म लगाए रहते हैं। वे तुम्हारे योग्य नहीं हैं।”
- यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और कहा, “भगवान शिव ही मेरे आराध्य और मेरे स्वामी हैं। मैं उन्हीं से विवाह करूंगी, चाहे कुछ भी हो जाए।”
- भगवान शिव माता पार्वती की अटूट भक्ति से प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट होकर उन्हें वरदान दिया कि वे शीघ्र ही उनसे विवाह करेंगे।
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह
भगवान शिव ने सप्तऋषियों को माता पार्वती के पिता हिमालयराज के पास भेजा और विवाह का प्रस्ताव रखा। हिमालयराज अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस विवाह के लिए सहमति दे दी।
शिवजी अपनी बारात लेकर हिमालयराज के महल पहुंचे। उनकी बारात में भूत, प्रेत, नाग, गंधर्व और अनेक अद्भुत प्राणी थे। भगवान शिव स्वयं भस्म लगाए, गले में सर्प धारण किए हुए, बैल पर सवार होकर पहुंचे।
माता पार्वती की माता मैना देवी शिवजी के इस भयंकर रूप को देखकर भयभीत हो गईं और उन्होंने सोचा कि क्या यह उनकी पुत्री के लिए उचित वर है। तब भगवान शिव ने माता मैना के अनुरोध पर एक सुंदर रूप धारण किया और अलौकिक आभूषणों से सुसज्जित होकर माता पार्वती के समक्ष प्रकट हुए।
इसके बाद विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।
महाशिवरात्रि का महत्व
यह विवाह फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को संपन्न हुआ था। इसी कारण महाशिवरात्रि को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन विशेष रूप से शिव-पार्वती की पूजा की जाती है, और भक्तगण रात्रि जागरण कर भगवान शिव का ध्यान करते हैं।
शिकारी और बेलपत्र की पौराणिक कथा
शिकारी की जीविका और कठोर जीवन
प्राचीन काल की बात है। एक नगर में एक शिकारी रहता था, जो जंगल में जाकर पशु-पक्षियों का शिकार कर अपनी आजीविका चलाता था। उसका जीवन हिंसा और क्रूरता से भरा हुआ था, और वह अपने कृत्यों से अनभिज्ञ था। उसे यह ज्ञान नहीं था कि जीवों की हत्या करना पाप है।
शिकारी प्रतिदिन जंगल में जाकर शिकार करता और अपने परिवार का पेट भरता। लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि उसे पूरे दिन कोई भी शिकार नहीं मिला। दिनभर जंगल में भटकने और प्रयास करने के बावजूद वह भूखा-प्यासा रह गया।
शिकारी का बेल के वृक्ष पर विश्राम करना
थकान से व्याकुल शिकारी एक पेड़ की शाखाओं पर चढ़कर बैठ गया। यह कोई साधारण पेड़ नहीं, बल्कि एक बेल वृक्ष था, जिसके नीचे एक प्राकृतिक शिवलिंग स्थित था।
शिकारी ने सोचा कि रातभर इसी पेड़ पर रुककर सुबह फिर से शिकार की कोशिश करेगा। इसलिए उसने अपनी तलवार और तीर-धनुष पास में रख दिया और वृक्ष की शाखाओं पर टिककर बैठ गया।
शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित होना
रात बीतने लगी। भूख और थकान से व्याकुल होकर शिकारी के मन में चिंता और दुख उत्पन्न हो गया। वह व्यर्थ ही अपने जीवन को कोसने लगा और बेचैनी में इधर-उधर हाथ हिलाने लगा।
- जैसे ही उसने हिलने-डुलने की कोशिश की, वैसे ही बेल के पत्ते टूटकर नीचे गिरने लगे।
- संयोगवश वे सीधे नीचे स्थित शिवलिंग पर गिर रहे थे।
- शिकारी को इसका कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन इस प्रकार बिना किसी उद्देश्य के भी वह भगवान शिव की पूजा कर रहा था।
- पूरी रात इसी तरह चलता रहा—शिकारी हिलता, बेलपत्र गिरते, और भगवान शिव की अनजाने में पूजा होती रही।
भगवान शिव का प्रकट होना
रातभर शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ते रहे और शिकारी को इस बात का तनिक भी आभास नहीं था कि वह भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर रहा है।
- जैसे ही भोर हुई और प्रथम सूर्य किरणें जंगल में फैलीं, अचानक एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ।
- शिकारी भयभीत हो गया और उसने देखा कि स्वयं भगवान शिव वहां प्रकट हुए हैं।
- भगवान शिव ने अपने मधुर वाणी में कहा, “वत्स! आज संयोगवश ही सही, परंतु तुमने मेरी पूरी रात पूजा की है। तुम्हारे हृदय में जो पवित्रता जागृत हुई है, वह तुम्हारे सभी पापों को नष्ट कर चुकी है।”
- यह सुनते ही शिकारी की आत्मा पवित्र हो गई और उसके हृदय में भक्ति का संचार हुआ।
शिकारी का जीवन धन्य हो गया
शिकारी ने जब भगवान शिव के मुख से यह वचन सुने, तो उसके भीतर एक आध्यात्मिक परिवर्तन आ गया। वह भाव-विभोर हो गया और उसने अपने पापमय जीवन को छोड़कर भगवान शिव की भक्ति करने का संकल्प लिया।
- उसने हिंसा का मार्ग त्याग दिया और जीवनभर परोपकार और भक्ति के मार्ग पर चलने का व्रत लिया।
- भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया कि “जो भक्त सच्चे हृदय से महाशिवरात्रि के दिन मेरी पूजा करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।”
महाशिवरात्रि का महत्व
यह घटना फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुई थी, इसलिए इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
- इस कथा से यह संदेश मिलता है कि भक्ति का मार्ग अपनाने के लिए कोई विशेष नियम आवश्यक नहीं, बल्कि सच्चे हृदय से भगवान शिव का स्मरण करने से भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
- बेलपत्र, जो भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
- यह कथा यह भी सिखाती है कि हर व्यक्ति, चाहे वह कितना भी पापी क्यों न हो, अगर सच्चे मन से शिव की भक्ति करे, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
- परिभाषा:
- शिवरात्रि: हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इसे मासिक शिवरात्रि कहते हैं।
- महाशिवरात्रि: साल में एक बार फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाई जाती है, जो सबसे महत्वपूर्ण होती है।
- महत्व:
- शिवरात्रि: यह मासिक उपवास एवं साधना का दिन है, जब भक्त भगवान शिव की पूजा करके उनसे कृपा प्राप्त करते हैं।
- महाशिवरात्रि: यह भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का दिन माना जाता है और इस दिन व्रत, जागरण, अभिषेक और विशेष पूजा का महत्व होता है।
- व्रत और पूजा विधि:
- शिवरात्रि: मासिक शिवरात्रि के दिन भक्त हल्का उपवास और रात्रि पूजा करते हैं।
- महाशिवरात्रि: इस दिन भक्त निर्जला व्रत, रात्रि जागरण, शिवलिंग पर जलाभिषेक और विशेष अनुष्ठान करते हैं।
- आध्यात्मिक महत्व:
- शिवरात्रि: यह भक्तों को हर महीने आध्यात्मिक उन्नति और शिव कृपा प्राप्त करने का अवसर देता है।
- महाशिवरात्रि: यह दिन पापों के नाश, मोक्ष की प्राप्ति और विशेष इच्छाओं की पूर्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
- विशेष तिथि और आयोजन:
- शिवरात्रि: प्रत्येक महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है, इसलिए साल में 12 बार मनाई जाती है।
- महाशिवरात्रि: वर्ष में सिर्फ एक बार आती है और यह सबसे बड़ी शिवरात्रि होती है।
निष्कर्ष
महाशिवरात्रि भगवान शिव की उपासना का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन शिवलिंग का जलाभिषेक, व्रत, मंत्र जाप, रात्रि जागरण और शिव पुराण का पाठ करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को अभयदान देते हैं। जो भक्त श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को करता है, उसे सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
ॐ नमः शिवाय! 🙏🚩
हमारी अगली पोस्ट: 12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी: जानिए भगवान शिव के दिव्य धामों की कथा