यहाँ कुछ कार्यों की सूची दी गयी है जिनमें से कुछ कार्यों को कभी नहीं करना चाहिए अन्यथा स्वास्थ्य हानि होना तय है. ऐसे भी कुछ कार्य कार्य है जिन्हें करना हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकारी होता है तो चलिए जानते हैं –
- ये पाँच काम हमेशा ठीक समय पर करना चाहिए
- प्रात: उठना
- शौच कार्य .
- स्नान
- भोजन
- सोना
- यह स्वस्थ बने रहने का मूलमंत्र है ।
- ध्यान देने योग्य बातें –
- प्रात: उठते ही कुल्ला या दन्त मंजन॑ करके एक गिलास ठंण्डा पानी पी कर इसके बाद एक गिलास कुनकुने गरम पानी (हल्का गर्म पानी) में नींबू निचोड कर पी लें, फिर शौच के लिए जाएँ।
- मल, मूत्र ,छीक, जम्भाई, निद्रा, उलटी, डकार, भूख, प्यास , आँसू, अपान वायू, वीर्य और परिश्रम से उत्पन्न हुआ श्वास वेग – ये आधारणीय वेग है । इन वेगों को कभी रोकना नहीं चाहिए। इन्हें रोकने से स्वास्थ्य की हानि होती है.
- कम खाना और गम खाना – स्वास्थ्य रक्षा करने वाले है। अपनी भुख से एक रोटी कम खाने से पेट ठीक रहता है और गम खाना यानि सब्र संतोष रखने से दिमाग ठीक रहता है। यदि आदमी का पेट और दिमाग ठीक रहता है तो आदमी स्वस्थ रहता हैं।
- भोजन करके तुरन्त सोना या परिश्रम करना, चिन्ता करते हुए भोजन करना, भोजन करते हूए बातें करना और भोजन के अन्त में जल पीना- अपच और कब्ज करने वाले काम है। इनसे बचना चाहिए.
- भुख लगे तंब भोजन न करना , भूख-मर जाए तब भोजन करना, खूब चबाए बिना निगल जाना, भोजन करने के बाद तीन घण्टें के भीतर दोबारा भोजन खाना या फिर अधिक मात्रा में भोजन खाना कभी सुखद नहीं होता है|
- देखे बिना जल ना पीयें. जाने बिन मित्रता न करें. हाथ धोये बिना भोजन न करें, पूछे बिना राय-न दें, अपने से बडे.का तिरस्कार न करें, बलवान से शत्रुता और दुष्ट से मेलजोल न. रखे, अजनबी पर एकदम विश्वास न करें. इन सभी बातों को जीवन में अपना लिया तो कई व्यांधियों और विपत्तियों से बचे रहोगे. इस जगत में ऐसा कोई पदार्थ नहीं, जो उचित व सही मात्रा के अनुसार प्रयोग करने पर औषधि का काम न करें । युक्ति और सही मात्रा का पालन न करने पर तो अच्छा भोजन भी विष समान हो जाता है।
- अति व्यायाम, अति हँसी -दिल्लगीं , अति बोलना ,अति परिश्रम, अति जागरण और अति मैथुन-इन कर्मों का अभ्यास हो जाने पर यदि इन से आज कोई कष्ट न भी हो, तो भी इन कर्मों में अति उचित नही, क्योंकि देर.सवेर आज नहीं तो कल किसी भी कार्य में अति करना अंतत: कष्टदायक ही सिद्ध होता है।
- शीतकाल में प्रात: काल धूप का सेवन करना और रात्रि में शरीर को शीत से बचाना हितकारी होता है, लेकिन भूख सहन करना और देर रात तक जागना हितकारी नहीं होता।
- सोने से पहले पेशाब कर लेना, मीठा दुध पीना , दन्त मंजन या ब्रश करंके मुँह साफ करना, हाथ-पैर धो लेना और दिन भर में किये हुए कर्मों पर विचार करने के बाद ईश्वर का ध्यान करते हुए सोना मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत हितकारी होता है! खाते समय और सोते समय मन एंकाग्र रखना चाहिए।
- भोजन के साथ कच्चे सलाद के रुप में गाजर, मूली, हरी ककडी, प्याज, पत्ता गोभी, हरा धनिया, मूली के पत्ते, पालक की भाजी आदि में से जो भी उपलब्ध हो, उन्हें बारीक काट कर सलाद के रुप में खाना चाहिए।
भोजन के हानिकारक संयोग
नीचे भोजन के कुछ के कुछ हानिकारक संयोग दिए गये है. भोजन करते समय इन्हें स्मरण रखना अत्यंत आवश्यक है.
दूध के साथ – दही, नमक, खट्टी चीज़ें, इमली, खरबूज, नारियल, मूली, या उसके पत्ते, तुरई, बेल, कुल्थी, खट्टे फल सत्तू हानिकारक होते है। दूध में गुड घोलकर सेवन नहीं करना चाहिए।इससे प्रत्यक्ष में ही दूध फट जाता है। कटहल या तेल से बने पदार्थ भी हानिप्रद है।
दही के साथ- खीर / दूध, पनीर, गरम भोजन,केला या केले का साग, खरबूजा, मूली इत्यादि नहीं लेना चाहिए।
घी के साथ – ठण्डा दूध, ठण्डा पानी और समान मात्रा में शहदं हानिप्रद होता है।
शहद के साथ – मूली, खरबूजा, समान मात्रा में घी, अंगूर, वर्षा का जल और गरम जल हानिकारक होते है।
खीरा के साथ – ककड़ी नहीं लेना चाहिए।
कटहल के बाद – पान हानिप्रद है।
मूली के साथ – गुड हानिप्रद है।
चावल के साथ – सिरका हानिप्रद है।
खीर के साथ – खिचडी , खट्टे पदार्थ, कटहल, सत्तू नहीं लेना चाहिंए।
गरम जल के साथ – शहद हानिप्रद होता है।
शीतल जल के साथ – मूंगफली, घी, तेल, खरबूजा , अमरूद जामुन ककड़ी, खीरो , गरम दूध अथवा गरम भोजन नहीं लेना चाहीए।
तरबूज के साथ – पोदीना या शीतल जल नहीं लेना चाहीए
चाय के साथ – खीरा, ककड़ी; ‘या ठण्डे फल या ठण्डा पानी नहीं लेना चाहीए
मछली के साथ – दूध, गन्ने का रस, शहद और पानी के किनारे रहने वाले पक्षियों का मांस नहीं खाना चाहिए।
मॉँस के साथ- मधु या पनीर लेने से पेट खराब होता है।
गरम भोजन के साथ- ठण्डे भोजन या ठण्डे पेय हानिप्रद होते हैं।
खरबूजे के साथ- लहसुन, मूली या उसके पत्ते, दूध अथवा दही हानिप्रद होते है।
अन्य महत्वपूर्ण सावधानियां –
कॉँसा, तॉबा या पीतल के पात्रों में रखी हुई वस्तु जैसे-घी, तेल खटाई, दही, छाछ,दूध, मख्खन, रसदार .दालें, आदी सब्जियाँ, विषाक्त हो जाते है, अतः उनमें देर तक रखे पदार्थ नहीं खाने चाहिए। एल्यूमीनियम एवं प्लास्टिक के बर्तनों में तरल पदार्थ उबालने एवं खाने-पीने से विभिन्न प्रकार के रोग पैदा होता है।
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