“सती अनसूया: जिनकी पतिव्रता शक्ति के आगे त्रिदेव भी नतमस्तक हुए!”

सती अनसूया की परीक्षा”

सती अनसूया

एक दिन, सती अनसूया की परीक्षा लेने के लिए तीन साधु उनकी कुटिया के द्वार पर आए। अतिथियों के स्वागत के लिए अनसूया ने अर्घ्य और आचमन देकर कंद-मूल समर्पित किया। लेकिन साधुओं ने उनका आतिथ्य स्वीकार नहीं किया।

अनसूया ने विनम्रता से पूछा, मुनिवर, मुझसे कोई अपराध हो गया क्या, जो आप पूजा ग्रहण नहीं कर रहे?”

मुनियों ने उत्तर दिया, यदि आप हमारी प्रतिज्ञा स्वीकार करें, तभी हम अन्न-जल ग्रहण करेंगे।”

अनसूया ने कहा, अतिथि-सत्कार तो प्राणों का बलिदान देकर भी किया जाता है। अतः मैं वही करूंगी जिससे आप प्रसन्न हों।”

मुनियों ने कहा, तो आप निसंकोच होकर हमारा आतिथ्य करें।”

सती अनसूया यह सुनकर असमंजस में पड़ गईं। उन्होंने विनीत स्वर में पूछा, आपका अभिप्राय क्या है?”

मुनियों ने स्पष्ट किया, आपको हमसे परपुरुष जैसा व्यवहार नहीं करना होगा। आपको लज्जा और संकोच त्यागकर निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी।”

यह सुनकर सती अनसूया अवाक रह गईं। उन्होंने दृढ़ता से कहा, यह कैसे संभव है? कोई भी पतिव्रता नारी भला परपुरुषों के सामने अपनी लज्जा और मर्यादा का त्याग कैसे कर सकती है? यह तो नारी का सबसे बड़ा आभूषण होता है। आप मुझसे मेरा आभूषण क्यों छीनना चाहते हैं? निश्चित ही आपके मन में कोई खोट है।”

मुनियों ने उत्तर दिया, हम सच्चे तपस्वी हैं। यदि तुम हमारी बात नहीं मानोगी, तो हम चले जाएंगे। लेकिन यह याद रखना, हमें यूं लौटाने का परिणाम विनाशकारी होगा।”

सती अनसूया ने ध्यान लगाया और अपने तपोबल से जाना कि ये साधु वास्तव में स्वयं त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—हैं। माता लक्ष्मी, सती पार्वती और सरस्वती ने अपने अभिमानवश इन्हें भेजा था ताकि वे अनसूया की पतिव्रता धर्म की परीक्षा ले सकें।

सब कुछ जानकर माता अनसूया मुस्कुराईं। उन्होंने त्रिदेव को कुटिया के भीतर आदरपूर्वक बैठाया और प्रार्थना की, यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूं, यदि मैंने स्वप्न में भी परपुरुष का ध्यान नहीं किया हो, तो ये तीनों त्रिदेव छह महीने के शिशु बन जाएं।”

जैसे ही उन्होंने यह कहा, त्रिदेव तुरंत छह महीने के बालक बनकर रोने लगे।

सती अनसूया का अद्भुत तपोबल”

sati anusooya

माता अनसूया ने निर्वस्त्र होकर तीनों शिशुओं को स्तनपान कराया। तभी उनके पति, महामुनि अत्रि, वहां आए। उन्होंने सुकुमार बच्चों को देखकर आश्चर्य से पूछा, देवि, ये तीनों देवस्वरूप, कमनीय बालक किसके हैं?”

अनसूया ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, भगवन, ये आपके ही पुत्र हैं। भगवान ने स्वयं कृपा कर इन्हें प्रदान किया है।”

महर्षि ने समाधि द्वारा इस रहस्य को जाना और आनंदित हो गए। तीनों देव अब छोटे बच्चों के रूप में माता की गोद में खेलते और उनके साथ क्रीड़ा करते थे। समय बीतता गया—दिन, महीने और फिर वर्ष गुजर गए।

इधर, तीनों देवियों—लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती—को चिंता होने लगी कि उनके पतिदेव अब तक वापस क्यों नहीं आए। इतने दिनों तक उनकी अनुपस्थिति असामान्य थी। घबराकर वे मंदाकिनी के तट पर पहुंचीं। तभी नारद मुनि वहां आए और “नारायण-नारायण” कहते हुए प्रकट हुए।

देवियों ने नारद को रोककर विनयपूर्वक पूछा, मुनिवर, हमारे पतिदेव कहां गए? वे अब तक लौटे क्यों नहीं?”

नारद ने मंद मुस्कान के साथ अंगुली से संकेत कर कहा, देखो, वे अनसूया की गोद में खेल रहे हैं।”

यह दृश्य देखकर देवियों का अहंकार चूर-चूर हो गया। उन्हें यह स्वीकार करना पड़ा कि वे अनसूया की पतिव्रता शक्ति को समझने में भूल कर रही थीं। अब वे उनके तप की शक्ति से भयभीत भी थीं और लज्जित भी।

नारद ने समझाया, देखो, तुम्हारे पतिदेव अब शिशु बने हुए किलकारियां भर रहे हैं। जहां माता उन्हें बिठाती हैं, वहीं बैठते हैं। जहां लिटाती हैं, वहीं लेटते हैं। अब जाकर अपनी भूल स्वीकारो और सती अनसूया की शरण लो।”

देवियों ने अपनी भूल मान ली और कहा, मुनिवर, हम स्वीकार करती हैं कि अनसूया से बढ़कर कोई पतिव्रता नहीं है। हम अब किसी गुणवान स्त्री के प्रति ईर्ष्या नहीं करेंगी। कृपया हमें मार्ग दिखाएं।”

नारद बोले, जाओ, सती की शरण में जाओ। तुम्हारा कल्याण होगा।”

तीनों देवियां आश्रम के द्वार पर खड़ी हो गईं। इस बीच, अनसूया मंदाकिनी में स्नान कर गीले वस्त्रों में अंदर आईं। देवियों ने कुटिया के बाहर से पुकारा, माताजी, क्या हम भीतर आ सकती हैं?”

अनसूया ने पूछा, तुम कौन हो?”

वे बोलीं, हम आपकी पुत्रवधुएं हैं।”

अनसूया ने स्नेहपूर्वक कहा, बहुओं को घर में आने के लिए पूछने की आवश्यकता नहीं होती। यह तुम्हारा ही घर है। अंदर आओ।”

तीनों देवियां लज्जा से नम्र हो गईं। तभी अत्रि ऋषि वहां आए। देवियां घूंघट डालकर एक ओर बैठ गईं।

महर्षि ने पूछा, देवि, ये तीनों कौन हैं?”

अनसूया ने मुस्कराकर कहा, ये आपकी पुत्रवधुएं हैं।”

अत्रि ऋषि ने आश्चर्य से कहा, देवि, तुम तो बड़ा कौतुक कर रही हो!”

तीनों देवियों ने अनसूया के चरण पकड़ लिए और प्रार्थना की, माताजी, कृपा करें। हमें क्षमा करें और हमारे पति हमें लौटाएं।”

अनसूया ने स्नेह से कहा, मैंने कब मना किया है? उन्हें अपनी गोद में उठा लो।”

देवियों ने कहा, माताजी, हमें अब और लज्जित न करें।”

यह सुनकर माता अनसूया का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने अपनी पतिव्रता धर्म की शक्ति से त्रिदेव को उनके वास्तविक स्वरूप में लौटा दिया। फिर उठकर तीनों देवों की वंदना की और पूजन किया।

त्रिदेव बोले, हे सती, हम तुम्हारे पतिव्रत धर्म से संतुष्ट हैं। वर मांगो।”

अनसूया ने कहा, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो मेरे पुत्र बन जाएं।”

तीनों देवों ने प्रसन्न होकर तथास्तु!” कहा। कालांतर में यही त्रिदेव पुत्र रूप में जन्मे।

पतिव्रता धर्म की शक्ति अपार होती है। जो नारी अपने पति को परमेश्वर मानकर अपनी समस्त इच्छाओं को उनके चरणों में अर्पित कर देती है, उसके लिए संसार में कुछ भी असाध्य नहीं।

सती अनसूया की अद्भुत पतिव्रता शक्ति

एक और प्रसंग अनसूया जी की अपूर्व शक्ति को दर्शाता है।

एक बार, पृथ्वी पर एक ऐसी घटना घटी कि दस दिनों तक सूर्योदय नहीं हुआ। पूरा संसार अंधकार में डूब गया। देवताओं ने चिंतित होकर ब्रह्मा जी से उपाय पूछा।

ब्रह्मा जी बोले, यह पतिव्रता स्त्री शांडिली की शक्ति का प्रभाव है। यदि किसी को इसका समाधान निकालना है, तो वह केवल सती अनसूया ही कर सकती हैं।”

देवगण माता अनसूया के पास पहुंचे और विनम्रता से अपनी व्यथा सुनाई।

अनसूया ने धैर्यपूर्वक कहा, मैं शांडिली से बात करूंगी।”

वह शांडिली के पास गईं और प्रेमपूर्वक समझाया, बेटी, मैं वचन देती हूं कि अपनी तपोशक्ति से तुम्हारे पति को न केवल जीवित करूंगी, बल्कि उसे अजर-अमर कर दूंगी।”

शांडिली माता अनसूया के वचन पर विश्वास कर पिघल गई और उसने सूर्य को उदय होने दिया।

अनसूया ने अपने वचन के अनुसार, शांडिली के पति को पुनर्जीवित कर दिया और उसे रोगमुक्त कर अमरत्व प्रदान किया।

इस घटना ने पुनः सिद्ध कर दिया कि सच्चा प्रेम, समर्पण और निष्ठा ऐसी शक्तियां हैं जो असंभव को संभव बना देती हैं। जब कोई अपने कर्तव्यों और धर्म के प्रति पूर्ण समर्पित होता है, तो संपूर्ण ब्रह्मांड उसके संकल्प के सामने नतमस्तक हो जाता है।

सती अनसूया का जीवन हमें यह सिखाता है कि प्रेम, त्याग और निष्ठा की शक्ति संसार की सबसे बड़ी शक्ति है।”

प्रतिदिन की पूजा अर्चना के नियम जानने के इस आर्टिकल को जरुर पढ़े.

 

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