“ठग की बेटी और राजकुमार: प्रेम, चालाकी और साहस की अनोखी गाथा”

एक घने जंगल में एक ठग की बेटी रहती थीं। वे दो बहनें थी. वे जंगल से गुजरने वाले मुसाफिरों को छल-कपट से लूटकर उनका कत्ल कर देती थीं। लेकिन एक दिन, एक ऐसा मुसाफिर उनके जीवन को पूरी तरह बदलने वाला था।

ठग की बेटी

राजकुमार महेन्द्र गुप्त का देश निकाला

एक क्रोधित राजा ने अपने पुत्र को किसी दोष के कारण देश निकाला दे दिया। राजकुमार, जिसका नाम महेंद्र था, दुखी मन से अपने गुजारे के लिए चार लाल और कुछ स्वर्ण मुद्राएँ साथ लेकर अपने पिता का महल छोड़कर निकल पड़ा। चलते-चलते जब वह शहर से कुछ दूर पहुँचा, तो उसे एक साधु का आश्रम दिखाई दिया।

साधु से भेंट

वह साधु के चरणों में प्रणाम कर उनके समक्ष बैठ गया। साधु ने उसकी उदास शक्ल और कीमती वस्त्र देखकर पूछा, “वत्स, तुम कौन हो और यहाँ कैसे आए?” राजकुमार बोला, “महाराज, मैं राजा चंद्रगुप्त का पुत्र महेंद्र हूँ। मेरे पिता ने मुझे देश निकाला दे दिया है, इसलिए मैं परदेश जा रहा हूँ। रास्ते में आपका आश्रम दिखाई दिया, तो सोचा कि आपके दर्शन कर लूँ।”

ठग की बेटी

साधु ने उसकी व्यथा सुनी और कहा, “वत्स, तुम नेक इंसान हो। परदेश जा रहे हो, तो मेरी चार बातें ध्यान रखना, ये तुम्हारे बहुत काम आएँगी।” साधु ने उसे आशीर्वाद देते हुए चार महत्वपूर्ण बातें बताईं:

  1. परदेश में एक से भले दो होते हैं।
  2. किसी के हाथ का बना खाना खाने से पहले उसे किसी जानवर को खिला देना चाहिए।
  3. किसी अजनबी की बिछाई चारपाई पर बिना जांचे न सोना चाहिए।
  4. यदि कभी शत्रु के जाल में फंस जाओ, तो धैर्य और ज्ञान से काम लेकर बचने की कोशिश करनी चाहिए।

राजकुमार ने इन बातों को हृदय में बसा लिया और आगे बढ़ गया।

जंगल में एक नया साथी

कई दिनों के सफर के बाद, महेंद्र एक घने जंगल में पहुँचा। उसने देखा कि एक चील एक छोटे कछुए को अपने पंजों में दबोचकर उड़ रही थी। तभी संयोगवश वह कछुआ उसके पंजों से छूटकर नीचे गिर गया। महेंद्र को उस तड़पते हुए कछुए पर दया आ गई। उसने सोचा, “यदि मैं इस कछुए को पाल लूँ, तो इसकी जान भी बच जाएगी और साधु द्वारा दी गई पहली सीख भी पूरी हो जाएगी कि सफर में एक से भले दो होते हैं।” यह सोचकर महेंद्र ने उस कछुए को उठा लिया और अपनी यात्रा जारी रखी। अब उसका यह छोटा सा साथी भी उसके साथ था।

जीवन और मृत्यु की लड़ाई

कई दिनों की यात्रा के बाद महेंद्र को एक आरामदायक स्थान दिखाई दिया। उसने वहीं रुककर भोजन किया और फिर कछुए से बोला, “तुम यहाँ बैठो, मैं थोड़ी देर सो लेता हूँ।” वह एक बड़े पेड़ के नीचे सो गया। लेकिन उस पेड़ पर एक सांप और एक कौआ रहते थे। उनकी आदत थी कि जब भी कोई मुसाफिर उस पेड़ के नीचे सोता, तो सांप उसे डस लेता और कौआ उसकी आँखें निकाल लेता। जब सांप ने महेंद्र को सोते हुए देखा, तो वह नीचे उतर आया और उसे डस लिया। विष के प्रभाव से महेंद्र अचेत हो गया। कुछ देर बाद कछुए की नजर महेंद्र पर पड़ी। उसने देखा कि महेंद्र की साँसें थम चुकी हैं। वह डर गया और महेंद्र के ऊपर बैठकर रोने लगा।

तभी कौआ नीचे उतरा और जैसे ही उसने महेंद्र की आँखें निकालनी चाही, कछुए ने झपटकर उसकी गर्दन पकड़ ली। कौआ जोर-जोर से फड़फड़ाने लगा, लेकिन कछुए ने उसे नहीं छोड़ा। कौए की आवाज सुनकर सांप आ गया। उसने कछुए की पीठ पर जोर से डंक मारा, लेकिन कछुए ने तुरंत अपना सिर अंदर कर लिया। सांप ने कई बार डंक मारा, लेकिन हर बार कछुआ बच गया। जब सांप ने देखा कि वह कछुए पर हावी नहीं हो सकता, तो उसने कछुए से कहा, “कृपया मेरे मित्र को छोड़ दो।”

कछुआ बोला, “तूने मेरे मित्र को डसकर मार दिया है। मैं भी तेरे मित्र की जान लूँगा। अगर तू मेरे मित्र को बचा सकता है, तो मैं तेरे मित्र को छोड़ दूँगा।” सांप ने सोचा कि कौआ उसके लिए बहुत उपयोगी है, इसलिए उसने तुरंत महेंद्र के शरीर से विष खींच लिया। थोड़ी देर बाद महेंद्र की साँसें वापस लौट आईं। यह देखकर कछुए ने कौए को छोड़ दिया।

महेंद्र जब होश में आया, तो कछुए ने उसे सारी घटना विस्तार से बताई। यह सुनकर महेंद्र को साधु की पहली सीख याद आ गई – “एक से भले दो होते हैं।” उसने मन ही मन साधु को धन्यवाद दिया और अपनी यात्रा जारी रखी। चलते-चलते कुछ दिनों बाद जब महेंद्र और कछुआ समुद्र के किनारे पहुंचे, तो कछुआ खुशी से उछल पड़ा। “मित्र, मेरा देश आ गया!” कछुए ने उत्साह से कहा। “यदि तुम चाहो, तो मैं तुम्हें अपने माता-पिता से मिलवा सकता हूँ। उनसे मिले बहुत दिन हो गए हैं, वे बहुत दुखी होंगे।” महेंद्र मुस्कराया और बोला, “हाँ, तुम्हें अपने माता-पिता से जरूर मिलना चाहिए। जाओ, मैं यहीं ठहरूँगा।”

कछुआ खुशी-खुशी समुद्र में कूद गया और अपने माता-पिता से मिलने चला गया। उधर, महेंद्र ने वहीं जंगल में रात बिताने का निश्चय किया। पर उसे यह नहीं पता था कि यह जंगल कितना खतरनाक है।

जंगल के ठगों की योजना

उसी जंगल में कुछ ही दूरी पर एक ठग का परिवार रहता था। ठग की बड़ी बेटी ज्योतिष विद्या जानती थी। जब भी कोई यात्री कीमती सामान लेकर जंगल से गुजरता, वह अपनी विद्या से इसका आभास कर लेती थी। उस रात, उसने हवा में कुछ सूंघते हुए कहा, “पिताजी, मुझे खजाने की महक आ रही है। लगता है कोई यात्री हमारे जंगल में आया है और उसके पास चार लाल (कीमती रत्न) हैं। यदि आप उसे यहाँ ले आएँ, तो उससे लाल निकलवाना मेरा काम है। अगर वे लाल हमें मिल जाएँ, तो हम जन्मभर के लिए निहाल हो जाएँगे!”

ठग ने अपने चार बेटों को इशारा किया, “चलो, उस पथिक को खोजकर यहाँ लाते हैं। पर याद रखना, उसे मारना नहीं है, बस जीवित पकड़कर लाना है।”कुछ ही देर में, ठगों ने एक पेड़ के नीचे सोए हुए महेंद्र को देख लिया। “यही हो सकता है वो पथिक, जिसके पास लाल हैं!” एक बेटे ने कहा। उन्होंने तुरंत उसे पकड़ लिया और अपने घर ले गए। ठग की बड़ी बेटी मुस्कराई और बोली, “अब इसे लाल निकलवाने का काम मेरा है।”

ठग की छोटी बेटी का प्रेम

महेंद्र को देखते ही ठग की छोटी बेटी मंत्रमुग्ध हो गई। उसने मन ही मन कहा, यह युवक तो बहुत सुंदर और तेजस्वी है! मैं इसे मरने नहीं दूँगी। लेकिन भाइयों के डर से वह कुछ कह नहीं पाई। उसने चुपचाप महेंद्र को बचाने की योजना बनानी शुरू कर दी।

ज़हर मिला भोजन

रात में ठग की बड़ी बेटी ने खाना बनाया और उसमें ज़हर मिला दिया। फिर वह महेंद्र के पास आई और मीठी आवाज़ में बोली, “पथिक, यह भोजन तुम्हारे लिए है। सफर में तुमने बहुत कष्ट उठाया होगा, अब आराम से भोजन करो।” महेंद्र थाली देखकर खाने ही वाला था कि उसे साधु की दूसरी सीख याद आई – परदेश में किसी अनजान का खाना मत खाना। अगर खाना ही पड़े, तो पहले किसी जानवर को खिला देना।महेंद्र ने थोड़ा भोजन निकाला और एक कुत्ते के सामने डाल दिया। जैसे ही कुत्ते ने खाया, वह तड़पकर वहीं मर गया। यह देख महेंद्र सतर्क हो गया और भोजन करने से मना कर दिया। ठग की बड़ी बेटी को बहुत गुस्सा आया, लेकिन उसने अपने गुस्से को दबा लिया। उसने तुरंत योजना बदली और कहा, “पथिक, तुम्हारे आराम के लिए ऊपर के कमरे में एक सुंदर पलंग तैयार करवाया है। जाकर विश्राम करो।”

ठग की बेटी ने बिछाया जानलेवा पलंग

थका हुआ महेंद्र ऊपर पहुंचा। उसने देखा कि बिस्तर पर बढ़िया चादर बिछी हुई है। वह जैसे ही बैठने लगा, तभी उसे साधु की तीसरी सीख याद आई – परदेश में बिस्तर को झाड़कर सोना।महेंद्र ने बिस्तर झाड़ा और उसके होश उड़ गए। बिस्तर एक कच्चे सूत से बना था, जिसके नीचे आग से भरा एक गहरा कुआं था! नीचे जलते अंगारों को देखकर वह काँप गया। उसने तुरंत पास पड़ी एक टूटी चारपाई पर लेटने का फैसला किया। अब महेंद्र की नींद गायब हो चुकी थी।

उसने सोचा, अब इस रात से बचना बहुत मुश्किल है।तभी ठग की छोटी बेटी चुपके से आई और फुसफुसाकर बोली, “प्रिय, मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ। लेकिन आज की रात मेरी बहन की बारी है। तुम जैसे भी हो, आज की रात उससे बच जाओ। कल मेरी बारी होगी, तब मैं तुम्हें ज़रूर बचा लूंगी।” इतना कहकर वह चली गई।

राजकुमार का मौत से सामना

रात बीतने लगी। ठग की बड़ी बेटी सोच रही थी कि महेंद्र अब तक जलकर मर चुका होगा। वह ऊपर गई और दरवाज़ा खोलते ही चौंक गई। महेंद्र सही-सलामत टूटी चारपाई पर लेटा हुआ था। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने अपनी कटार निकाली और चिल्लाई, “पथिक! या तो अपने चारों लाल अभी मुझे दे दो, वरना मैं तुम्हें मार डालूंगी!” महेंद्र को साधु की चौथी सीख याद आई – यदि कभी शत्रुओं के फंदे में फँस जाओ, तो नरमी और ज्ञान की बातें सुनाकर अपनी जान बचाने का प्रयास करो।

उसने ठग की बेटी की आँखों में देखा और शांत स्वर में कहा, “मेरे पास कोई लाल नहीं हैं। यदि तुम मुझे मार दोगी, तो वैसे ही पछताओगी, जैसे एक बंजारा अपने कुत्ते को मारकर पछताया था।”

लड़की हैरानी से बोली, “कौन बंजारा? कौन सा कुत्ता? यह कैसी बकवास कर रहे हो?” महेंद्र मुस्कराया और बोला, “तुम नहीं जानती? तो सुनो…” फिर महेंद्र ने उसे एक बंजारे और उसके वफादार कुत्ते की कहानी सुनाई। राजकुमार ने गहरी सांस ली और कहा, तुम नहीं जानती तो सुनो, लड़की। एक बंजारा था, जिसने एक कुत्ता पाल रखा था। वह कुत्ता बहुत समझदार था और बंजारा उसे अपनी औलाद से भी ज्यादा प्यार करता था।

वह थोड़ा रुका और फिर आगे बोला, समय बीता और एक भयंकर बीमारी ने बंजारे के पूरे परिवार को निगल लिया। उसकी करोड़ों की संपत्ति भी बिक गई। दुखी होकर वह अपने वफादार कुत्ते को लेकर आगरा पहुंचा और एक साहूकार से बोला, ‘सेठजी, मुझे बहुत पैसों की जरूरत है। मैं अपने इस कुत्ते को गिरवी रखता हूं, बदले में मुझे दस हजार रुपये दे दीजिए।’”

राजकुमार ने ठग की बेटी की ओर देखा और कहा, उस समय दस हजार रुपये बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। पहले तो साहूकार ने इनकार कर दिया, लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने बंजारे को एक लाख रुपये दे दिए।राजकुमार ने कहानी जारी रखी, कुछ ही समय बीता था कि एक रात सेठ के घर डाकू घुस आए। बंजारे का कुत्ता सब देख रहा था। उसने सोचा, ‘अगर मैं भौंकूंगा, तो घरवाले जाग जाएंगे और डाकू उन्हें मार डालेंगे।इसलिए वह चुपचाप देखता रहा। जब डाकू सेठ के धन को लेकर जाने लगे, तो वह चुपचाप उनके पीछे हो लिया।

राजकुमार ने ठग की बेटी की आंखों में देखा और कहा, डाकुओं के पास बहुत धन था, लेकिन उसे उठाकर ले जाना मुश्किल हो रहा था। तभी उन्होंने तालाब के पास जाकर वह धन छिपा दिया और सोचा कि बाद में आकर इसे निकाल लेंगे। कुत्ता यह सब देखता रहा और फिर वापस लौट आया।

राजकुमार ने आगे कहा, सुबह जब सेठ को पता चला कि डाकू सारा धन लूटकर ले गए हैं, तो वह रोने लगा। तभी कुत्ते ने उसकी धोती पकड़कर खींचना शुरू किया। सेठ को गुस्सा आया और उसने कहा, ‘यह कुत्ता तो नमक हराम निकला! चोरों को देखकर भी भौंका तक नहीं!’” फिर राजकुमार ने कहा, वहीं खड़े एक समझदार व्यक्ति ने सेठ से कहा, ‘सेठजी, यह कुत्ता कुछ बताना चाहता है। हमें इसकी बात सुननी चाहिए।तब सभी लोग कुत्ते के पीछेपीछे चल दिए। वह उन्हें सीधे तालाब तक ले गया, जहां डाकुओं ने धन छिपाया था। फिर कुत्ता तालाब में घुसा और सोने की अशर्फियों से भरी एक थैली अपने मुंह में दबाकर बाहर निकला। सेठ के नौकर तालाब में कूदे और सारा धन निकाल लाए।

राजकुमार ने ठग की बेटी की ओर देखा और कहा, यह देखकर सेठ की आंखों में आंसू गए। उसने कुत्ते से कहा, ‘मुझे माफ कर देना! मैंने तुम्हें गलत समझा।फिर सेठ ने कागज मंगवाया और बंजारे के नाम एक चिट्ठी लिखी— ‘भाई बंजारे, तेरे कुत्ते ने मेरे दस हजार रुपये पूरे कर दिए। मैं इसे वापस भेज रहा हूं। यदि तुम्हें और पैसों की जरूरत हो, तो बेझिझक आकर ले जाना।’” राजकुमार थोड़ा रुका और फिर गंभीर स्वर में बोला, सेठ ने वह चिट्ठी कुत्ते के गले में बांध दी और उसे प्यार से विदा कर दिया।

उसने गहरी सांस ली और आगे कहा, कुत्ता चारपांच दिन भटकता रहा और आखिरकार अपने मालिक, बंजारे के पास पहुंच गया। लेकिन जैसे ही बंजारा उसे देखता है, उसके गुस्से की कोई सीमा नहीं रहती। वह चिल्लाता है, ‘तू वहां से भाग आया? तूने मेरी बेइज्जती कर दी!’” राजकुमार ने ठग की बेटी की आंखों में गहरा भाव देखा और कहा, बंजारा इतना गुस्से में था कि उसने बिना कुछ सोचेसमझे अपनी पिस्तौल निकाली और अपने प्यारे कुत्ते को गोली मार दी। फिर सिर पकड़कर बैठ गया। लेकिन तभी उसकी नजर कुत्ते के गले में टंगी चिट्ठी पर पड़ी।

वह रुका, फिर गहरी आवाज में बोला, जब उसने चिट्ठी पढ़ी, तो वह फूटफूटकर रोने लगा। खून के आंसू बहाए, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उसका गुस्सा, उसकी जल्दबाजी, उसकी मूर्खतासब उसे तब समझ आया, जब बहुत देर हो चुकी थी।राजकुमार ने ठग की बेटी की ओर देखा और कहा, अब बताओ, क्या तुम भी वही गलती करना चाहती हो? अगर तुम भी जल्दबाजी में कोई फैसला करोगी, तो कहीं ऐसा हो कि बाद में तुम्हें भी पछताना पड़े।

महेंद्र गुप्त ठग की बेटी से कहने लगा, एक और कहानी सुनो, लड़की।वह थोड़ा रुका और फिर बोला, एक राजा के पास एक बहुत समझदार, पढ़ालिखा तोता था। वह बड़ा चतुर था। एक दिन राजा तोते को अपने साथ गंगा स्नान के लिए ले गया। उसने तोते को घाट पर बैठाया और खुद स्नान करने लगा।महेंद्र ने ठग की बेटी की ओर देखा और आगे कहा, तभी तोते की नजर एक अमर फल पर पड़ी, जो नदी में बहता चला जा रहा था। उसने तुरंत उसे निकाल लिया। जब राजा स्नान करके लौटा, तो तोता खुशीखुशी बोला, ‘महाराज, यह अमर फल है। इसे खा लीजिए, आप अमर हो जाएंगे!’”

राजा ने फल को देखा और फिर मुस्कुराकर बोला, मैं अकेले अमर होकर क्या करूंगा? इससे अच्छा है कि इसे अपने बाग में लगवा दूं। जब इसमें फल लगेंगे, तो अपने पूरे परिवार को खिला दूंगा, जिससे सब अमर हो जाएं।महेंद्र ने ठग की बेटी से कहा, गंगा स्नान के बाद राजा अपने बाग में पहुंचा और माली को बुलाकर बोला, ‘इस फल को बाग में लगा दो।कुछ ही समय में पेड़ फलफूल गया और उस पर ढेर सारे फल लग गए।

महेंद्र ने आगे कहा, एक दिन एक पका हुआ फल पेड़ से गिरा। संयोग से उसे एक सांप ने सूंघ लिया, जिससे वह जहरीला हो गया। यह बात किसी को नहीं पता थी। तभी माली उस फल को लेकर राजा के पास गया और बोला, ‘महाराज, आपके अमर फल तैयार हो गए हैं!’” राजा फल देखकर बहुत खुश हुआ। उसने कुछ सोचकर कहा, बिना परीक्षण के इसे खाना ठीक नहीं होगा। पहले इसे कुत्ते को खिलाकर देखता हूं।महेंद्र ने ठग की बेटी की ओर देखा और गंभीर स्वर में कहा, जैसे ही कुत्ते ने वह फल खाया, वह तड़पकर मर गया। यह देखकर राजा क्रोधित हो गया। उसने गुस्से में तोते से कहा, ‘बेईमान तोते! तू मुझे जहर देकर मारना चाहता था?’”

तोता कुछ कहता, इससे पहले ही राजा ने क्रोध में आकर उसे मार डाला। फिर उसने माली से कहा, इस पेड़ के चारों ओर घेरा डाल दो, ताकि कोई इसका फल खा सके।महेंद्र गहरी सांस लेते हुए बोला, कुछ समय बाद उसी शहर में एक सास और बहू में भयंकर झगड़ा हो गया। गुस्से में सास घर से निकली और बोली, ‘अब मैं राजा के बाग में जाकर वह जहरीला फल खा लूंगी और अपनी जान दे दूंगी!’” वह तेज कदमों से बाग की ओर चली।

जैसे ही उसने पेड़ से एक फल तोड़ा और खाया, कुछ ही क्षणों में उसका शरीर बदलने लगा। वह अचानक सोलह वर्ष की सुंदर युवती बन गई!राजा को जब यह समाचार मिला, तो उसे सारा माजरा समझते देर न लगी। उसने अपना सिर पकड़ लिया और दुखी होकर कहा, यह वास्तव में अमर फल था! मैंने व्यर्थ ही अपने इतने समझदार तोते को मार डाला!”

सवेरा होतेहोते महेंद्र गुप्त की कहानी समाप्त हो गई। ठग की बड़ी बेटी मुस्कुराकर बोली, आज तो तुमने मुझे बातों में उलझाकर अपनी जान बचा ली, लेकिन आज रात मेरी छोटी बहन की बारी है। वह तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेगी!”जब ठग की छोटी बेटी को पता चला कि महेंद्र गुप्त अब भी सही-सलामत है, तो वह खुशी से झूम उठी। परंतु अपनी बहन के सामने अनजान बनते हुए बोली, तुम निश्चिंत रहो, बहन। आज रात यह लाल बचकर नहीं जाएगा!”

रात का समय और ठग की बेटी 

जैसे ही रात हुई, ठग की छोटी बेटी महेंद्र गुप्त के पास गई और मुस्कुराकर बोली, भगवान का शुक्र है कि तुमने अपनी जान बचाने के लिए इतनी चालाकी दिखाई।

महेंद्र गुप्त ने गहरी सांस ली और गंभीर स्वर में पूछा, तुम लोग ऐसा क्यों करते हो?” ठग की छोटी बेटी ने हंसते हुए उत्तर दिया, यह हमारी परंपरा है। मेरे पिता और भाई मुसाफिरों को पकड़कर लाते हैं, और हम बहनें अपनी चतुराई से उनसे धन लूटकर उन्हें मार डालती हैं।फिर वह मुस्कुराई और आगे बोली, लेकिन तुम चिंता मत करो, अब मेरी बारी है। मैं तो तुम्हारी दासी हूं। तुम्हें जैसा उचित लगे, वैसा करो।महेंद्र गुप्त ने गहरी नजरों से उसे देखा और भावुक होकर कहा, प्रिय, तुमसे मिलते ही मैं तुम्हें पसंद करने लगा था। दिल चाहता है कि हर पल तुम्हारे पास रहूं। तुम अपनी बड़ी बहन जैसी नहीं हो। तुम एक नेकदिल औरत हो, और तुमसे मेरा कुछ भी छिपा नहीं है।

यह सुनकर ठग की बेटी ने आँखें चमकाते हुए पूछा, अगर मुझसे कुछ भी छिपा नहीं है, तो वे लाल कहाँ हैं?” महेंद्र गुप्त मुस्कुराकर बोला, वे चारों लाल मेरी जांघ में छिपे हैं। अगर तुम चाहो, तो निकाल लो।ठग की छोटी बेटी ने प्यार से कहा, प्यारे, वे लाल तुम्हें ही मुबारक हों! मैं तो बस तुम्हारे दर्शनों की प्यासी हूं। मुझे तुम्हारे अलावा और कुछ नहीं चाहिए।महेंद्र गुप्त गंभीर होते हुए बोला, यह सब ठीक है, लेकिन प्रेम और विश्वास की बातें तब तक मायने रखती हैं, जब तक हम जीवित हैं। जब तुम्हारे पिता और भाइयों को हमारे बारे में पता चलेगा, तो हमारी जान खतरे में पड़ जाएगी!”

ठग की बेटी ने तुरंत उत्तर दिया, तुम चिंता मत करो। मेरे पास इसका उपाय है। जैसे ही सब सो जाएंगे, हम यहाँ से भाग चलेंगे और किसी ऐसे स्थान पर रहेंगे, जहाँ मेरे पिता और भाई कभी हमें ढूंढ सकें।

ठग की छोटी बेटी के साथ भागने की योजना

महेंद्र गुप्त ने संदेह से पूछा, लेकिन यह सब होगा कैसे?” ठग की बेटी ने समझाते हुए कहा, मेरे पिता के पास दो ऊंटनियाँ हैं। एक दिनभर में साठ कोस चलती है और दूसरी सौ कोस। तुम उनमें से बड़ी वाली को खोल लाना, तब तक मैं कुछ धन इकट्ठा कर लूंगी।आधी रात को महेंद्र गुप्त चुपके से तबेले में गया और जल्दी-जल्दी ऊंटनी को खोलकर ले आया। लेकिन जल्दबाजी में वह बड़ी ऊंटनी की जगह छोटी ऊंटनी ले आया। ठग की बेटी भारी धन लेकर ऊंटनी पर सवार हो गई, और दोनों भाग निकले। जब ऊंटनी लगातार चलकर साठ कोस की दूरी पार कर चुकी, तो अचानक जंगल में रुक गई। ठग की बेटी ने घबराकर कहा, अनर्थ हो गया! तुमने रात के अंधेरे में गलती से छोटी ऊंटनी ले ली! अब मेरे पिता और भाई किसी भी समय यहाँ पहुँच सकते हैं!”

राजकुमार का पीछा

इधर, जब सवेरा हुआ, तो ठग ने देखा कि उसकी बेटी और मुसाफिर दोनों गायब हैं। वह चिल्लाया, निश्चित ही वह बदमाश मेरी बेटी को भगा ले गया!” वह तेजी से तबेले की ओर भागा। जब उसने देखा कि छोटी ऊंटनी गायब है और बड़ी ऊंटनी वहीं खड़ी है, तो उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं। वे ज्यादा दूर नहीं गए होंगे!” ठग गुस्से में बड़बड़ाया और बड़ी ऊंटनी पर सवार होकर तेजी से जंगल की ओर निकल पड़ा। कुछ ही देर में वह उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ महेंद्र गुप्त और उसकी बेटी रुके हुए थे।

ठग की बेटी की अंतिम चालाकी

महेंद्र गुप्त ने ठग को आते देखा और घबराकर बोला, देखो! तुम्हारा पिता रहा है! अब हमारी जान कैसे बचेगी?”

ठग की बेटी

ठग की बेटी ने तुरंत कहा, घबराओ मत! जो मैं कहती हूँ, उसे ध्यान से सुनो। जाओ और उस पेड़ पर चढ़ जाओ। जब मेरा पिता तुम्हें पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ेगा, तो मैं चुपके से बड़ी ऊंटनी को उसकी डाल के नीचे ले आऊंगी। जैसे ही वह ऊंटनी के नीचे आए, तुम कूदकर उस पर बैठ जाना। इस तरह हम दोनों बचकर भाग निकलेंगे!”

महेंद्र गुप्त तुरंत पेड़ पर चढ़ गया। तभी ठग वहाँ आ पहुँचा। उसकी बेटी ने गुस्से का नाटक करते हुए चिल्लाया, पिताजी! यह दुष्ट मुझे धोखे से यहाँ भगा लाया! इसे कतई मत छोड़ना!” यह सुनकर ठग गुस्से से तिलमिला उठा। वह ऊंटनी से कूदकर उतरा और महेंद्र गुप्त को पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगा। ठग की बेटी ने मौका देखकर बड़ी ऊंटनी को पेड़ की उस डाल के नीचे ले आई, जहाँ महेंद्र गुप्त बैठा था। जैसे ही ठग पेड़ पर चढ़ा, महेंद्र गुप्त फुर्ती से कूदकर ऊंटनी पर बैठ गया। ठग की बेटी ने तुरंत ऊंटनी को दौड़ा दिया। ठग हक्का-बक्का रह गया।

ठग की छोटी बेटी के साथ ज़िंदगी की एक नई  शुरुआत

कई दिनों की यात्रा के बाद महेंद्र गुप्त और ठग की बेटी एक शहर पहुँचे। वहाँ दोनों ने कुछ समय बिताया और सुखपूर्वक रहने लगे।जब महेंद्र गुप्त के देश निकाले की अवधि समाप्त हो गई, तो वह ठग की बेटी को अपने राज्य ले आया। वहाँ उसने उससे विवाह किया, और दोनों खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे।

कहानी की सीख

महेंद्र गुप्त और ठग की बेटी की यह कथा हमें सिखाती है कि प्रेम और विश्वास का बंधन सबसे मजबूत होता है। जब बुद्धिमत्ता, धैर्य और निस्वार्थ प्रेम मिलते हैं, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। जीवन में चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ क्यों आएं, सही निर्णय, संयम और परस्पर विश्वास हमें हर संकट से बाहर निकाल सकते हैं। यदि आप कुत्ते को रोटी खिलने के आठ फायदे के बारे में पढना चाहते है तो इस मार्मिक कहानी को जरुर  पढ़े.

 

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