आज हम आपको भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी बताने जा रहे हैं. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग पूरे भारत में अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जो भी भक्त श्रद्धा से इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और पूजा करता है, उसके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हर ज्योतिर्लिंग के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा छिपी है, जो भगवान शिव की महिमा और भक्तों की भक्ति को दर्शाती है। इस लेख में हम आपको 12 ज्योतिर्लिंगों की पवित्र कहानियाँ बताएंगे, जिन्हें सुनकर आपका मन भी भक्ति से भर जाएगा। आइए, जानते हैं इन अद्भुत शिवधामों की रहस्यमयी कथाएँ!
12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी : प्रथम ज्योतिर्लिंग: श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इस स्थान को पहले प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यह वही स्थान है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन के अंतिम क्षण बिताए थे। इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत, श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराण में विस्तार से किया गया है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा
चंद्रदेव और दक्ष प्रजापति का श्राप: प्रजापति दक्ष की 27 बेटियाँ थीं, जिनका विवाह चंद्रदेव (चाँद) से हुआ था। लेकिन चंद्रदेव का प्रेम केवल रोहिणी के प्रति था, जिससे अन्य 26 पत्नियाँ बहुत दुखी हो गईं। उन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति से शिकायत की। जब दक्ष ने चंद्रदेव को समझाने की कोशिश की, तो चंद्रदेव ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। इससे क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को श्राप दिया कि वे क्षय रोग (टीबी) से ग्रस्त हो जाएँ। इस श्राप के कारण चंद्रदेव की चमक और तेज धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
चंद्रदेव का पश्चाताप और भगवान शिव की कृपा
जब चंद्रदेव का तेज खत्म होने लगा, तो धरती पर अराजकता फैल गई। समुद्र में ज्वार-भाटा बंद हो गया, फसलों को नमी मिलनी बंद हो गई और समस्त प्राणी संकट में आ गए। दुखी होकर इंद्रदेव, वशिष्ठ ऋषि और अन्य देवताओं ने ब्रह्माजी से सहायता मांगी। ब्रह्माजी ने चंद्रदेव को सलाह दी कि वे प्रभास क्षेत्र में जाकर भगवान मृत्युंजय (शिव) की आराधना करें। चंद्रदेव ने गंभीर तपस्या और मृत्युंजय मंत्र का 10 करोड़ बार जाप किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना
भगवान शिव ने चंद्रदेव को वरदान दिया कि उनका तेज दोबारा लौट आएगा, लेकिन शुक्ल पक्ष में उनका आकार बढ़ेगा और कृष्ण पक्ष में घटेगा। इसी वजह से आज भी चंद्रमा हर महीने घटता और बढ़ता है। इस वरदान से चंद्रदेव और सभी देवता प्रसन्न हुए। चंद्रदेव ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे हमेशा प्रभास क्षेत्र में विराजमान रहें। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और यहाँ सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व
- सोम चंद्रमा का एक नाम है, और चंद्रदेव ने यहाँ शिवजी की तपस्या की थी, इसलिए इसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
- इसे भारत का प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है और इसकी महिमा पुराणों में भी वर्णित है।
- इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- सोमनाथ मंदिर को कई बार आक्रमणकारियों ने नष्ट किया, लेकिन हर बार इसे दोबारा भव्य रूप में बनाया गया।
12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी: द्वितीय ज्योतिर्लिंग: श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। इसकी महिमा का वर्णन महाभारत, शिवपुराण और पद्मपुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
अब जानते हैं श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की अद्भुत और रोचक पौराणिक कथा।
श्री गणेश और कार्तिकेय के विवाह का विवाद
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के दोनों पुत्रों, श्री गणेश और श्री कार्तिकेय के बीच विवाह को लेकर विवाद हो गया। दोनों ही पहले विवाह करने की इच्छा रखते थे और इस बात पर तकरार करने लगे कि पहले विवाह किसका होगा।
इस विवाद को बढ़ता देख भगवान शिव और माता पार्वती ने एक परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने कहा—
“जो भी पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस लौटेगा, उसी का विवाह पहले होगा।”
जैसे ही यह शर्त रखी गई, भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े। उनकी गति अत्यंत तेज थी और वे जल्दी से जल्दी पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना चाहते थे।
दूसरी ओर, भगवान गणेश के सामने एक समस्या थी। उनका शरीर भारी था और उनका वाहन मूषक (चूहा) बहुत छोटा था। इस स्थिति में वे गति में कार्तिकेय से मुकाबला नहीं कर सकते थे। लेकिन गणपति बुद्धि के देवता हैं, उन्होंने अपनी बुद्धिमानी से समस्या का हल निकाला।
उन्होंने अपनी माता पार्वती और पिता शिव के चारों ओर सात बार परिक्रमा की और कहा—
“माता-पिता ही संपूर्ण सृष्टि के प्रतीक हैं। उनकी परिक्रमा करना ही पृथ्वी की परिक्रमा के समान है।”
शास्त्रों में भी कहा गया है—
“मातृदेवो भव। पितृदेवो भव।”
अर्थात माता-पिता की पूजा करना ही संपूर्ण संसार की पूजा करने के बराबर होता है।
भगवान शिव और माता पार्वती उनके इस कार्य से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद दिया। इसके साथ ही उनका विवाह भी पहले कर दिया गया।
भगवान कार्तिकेय का क्रोध और श्रीशैल पर्वत पर निवास
जब भगवान कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे, तो उन्होंने देखा कि श्री गणेश का विवाह पहले ही संपन्न हो चुका था। यह देखकर वे अत्यंत क्रोधित हो गए और माता-पिता से नाराज होकर क्रौंच पर्वत की ओर चले गए।
भगवान कार्तिकेय को मनाने के लिए माता पार्वती और भगवान शिव स्वयं उनके पीछे-पीछे क्रौंच पर्वत पहुंचे। लेकिन जब भगवान कार्तिकेय को पता चला कि माता-पिता उन्हें मनाने आ रहे हैं, तो वे वहां से भी आगे बढ़ गए।
जिस स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेय की प्रतीक्षा कर रहे थे, वह स्थान श्रीशैल पर्वत के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहीं भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करने का निश्चय किया और मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
इसका नाम मल्लिकार्जुन इसलिए पड़ा क्योंकि—
- “मल्लिका” का अर्थ है माता पार्वती
- “अर्जुन” का अर्थ है भगवान शिव
इस तरह यह ज्योतिर्लिंग माता-पिता के अटूट प्रेम और त्याग का प्रतीक बन गया।
श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा और महत्व
🔹 जो भक्त इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन और अभिषेक करते हैं, उनके सभी प्रकार के पाप और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
🔹 यह शिवलिंग भक्तों की सभी सत्कामनाओं की पूर्ति करता है।
🔹 यहां की यात्रा करने से दैहिक, दैविक और भौतिक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
🔹 यह स्थान मोक्ष प्राप्ति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी: तृतीय ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। यह क्षिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है और इसे प्राचीन काल में अवन्तिका पुरी कहा जाता था। उज्जैन भारत के सात पवित्र पुरियों (सप्तपुरी) में से एक है और यह स्थान शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन महाभारत, शिवपुराण और स्कंदपुराण में विस्तार से किया गया है। यह शिवलिंग स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है और इसका विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह काल (समय) के अधिपति भगवान शिव का निवास स्थान है।
अब जानते हैं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की अद्भुत और रोचक पौराणिक कथा।
अत्याचारी असुर दूषण और महाकाल का प्राकट्य
प्राचीन काल में अवन्तिका पुरी में एक अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मण रहते थे, जो वेदों के ज्ञाता और घोर तपस्वी थे। उनकी तपस्या और शिवभक्ति के कारण चारों ओर उनका सम्मान था।
एक दिन दूषण नामक एक अत्याचारी राक्षस ने इस पवित्र भूमि पर आक्रमण कर दिया। वह भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर अमर हो चुका था और उसकी शक्ति अपार थी। वरदान के कारण उसे कोई भी साधारण मानव पराजित नहीं कर सकता था। उसकी क्रूरता के कारण चारों ओर भय और आतंक का माहौल था।
दूषण ने जब उस ब्राह्मण को तपस्या करते देखा, तो उसने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। वह धार्मिक अनुष्ठानों और तपस्याओं का विरोध करता था और चाहता था कि कोई भी भगवान शिव की आराधना न करे। जब ब्राह्मण ने उसकी बात मानने से इंकार कर दिया, तो दूषण ने उस पर आक्रमण कर दिया।
भगवान महाकाल का प्रकट होना
जब ब्राह्मण ने देखा कि राक्षस के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं, तो उसने भगवान शिव का स्मरण किया और उनकी कृपा की प्रार्थना की। शिवजी तो भक्तों के कष्ट हरने वाले हैं, वे तुरंत प्रकट हो गए।
भगवान शिव ने केवल एक गर्जना (गंभीर रौद्र आवाज) से ही उस राक्षस को भस्म कर दिया। इस तरह भगवान शिव ने अपने भक्त की रक्षा की और दूषण राक्षस का अंत किया।
जब ब्राह्मण और अन्य भक्तों ने भगवान शिव को साक्षात प्रकट होते देखा, तो वे आनंद और भक्ति से ओत-प्रोत हो गए। उन्होंने भगवान शिव से निवेदन किया कि वे सदा के लिए इस पवित्र स्थान पर निवास करें।
भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और स्वयं यहाँ महाकाल के रूप में स्थापित हो गए। क्योंकि उन्होंने भयंकर गर्जना करके उस राक्षस का अंत किया था, इसलिए उन्हें महाकाल कहा जाने लगा।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता
🔹 कालों के काल महाकाल – भगवान शिव को समय का अधिपति माना जाता है। वे आदि भी हैं और अंत भी, इसलिए उन्हें महाकाल कहा जाता है।
🔹 यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है, इसलिए इसकी महिमा और भी बढ़ जाती है।
🔹 यह दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जो इसे और अधिक शक्तिशाली और चमत्कारी बनाता है।
🔹 यहां भस्म आरती का विशेष महत्व है। यह आरती प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में होती है और दुनियाभर से लोग इसे देखने के लिए आते हैं।
श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा और लाभ
🌿 महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से भक्तों को—
✔ जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
✔ मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
✔ मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।
✔ सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
✔ भक्तों को भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी: चतुर्थ ज्योतिर्लिंग: श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में स्थित है। यह पवित्र नर्मदा नदी के किनारे मंधाता पर्वत पर स्थित है, जिसे शिवभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन शिवपुराण में विस्तार से किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग की एक विशेषता यह है कि इसे दो भागों में विभाजित किया गया है—
- ओंकारेश्वर
- ममलेश्वर
हालाँकि ये दोनों अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं, फिर भी इन्हें एक ही ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
अब जानते हैं ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की अद्भुत और रोचक पौराणिक कथा।
मंधाता पर्वत और भगवान शिव की कृपा
प्राचीन समय में राजा मंधाता ने इस पर्वत पर घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और आशीर्वाद दिया। तभी से यह पर्वत मंधाता पर्वत कहलाने लगा।
यह भी मान्यता है कि इस क्षेत्र में देवताओं और ऋषियों ने शिव की उपासना की, जिससे यह स्थान दिव्य और चमत्कारी बन गया।
विंध्य पर्वत की कठोर तपस्या और ज्योतिर्लिंग का दो भागों में विभाजन
एक बार विंध्य पर्वत (विंध्याचल पर्वत) ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। उन्होंने छह महीने तक कठोर साधना और अनुष्ठान किए। उनकी भक्ति देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्होंने विंध्य को वरदान देने के लिए प्रकट हुए।
भगवान शिव ने कहा, “तुम जो भी वरदान मांगोगे, वह तुम्हें प्राप्त होगा।”
विंध्याचल पर्वत ने अपनी शक्ति और प्रभाव को बढ़ाने का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
इस महान अवसर पर ऋषि-मुनि और देवगण भी वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे यहाँ स्थायी रूप से निवास करें ताकि आने वाले युगों तक शिवभक्तों को आशीर्वाद मिलता रहे।
भगवान शिव ने ऋषियों की प्रार्थना स्वीकार कर ली और स्वयं को दो रूपों में विभाजित कर दिया—
- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (मंधाता पर्वत पर)
- ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (नर्मदा नदी के दक्षिणी किनारे पर)
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता
🔹 एकमात्र ज्योतिर्लिंग जिसके दो रूप हैं – ओंकारेश्वर और ममलेश्वर अलग-अलग स्थानों पर स्थित होने के बावजूद, एक ही शक्ति और ज्योतिर्लिंग माने जाते हैं।
🔹 गुप्त आरती (Secret Aarti) – यह भगवान शिव का एकमात्र मंदिर है जहाँ गुप्त आरती होती है। इस आरती के समय केवल पुजारी ही गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं।
🔹 नर्मदा स्नान का विशेष महत्व – शिवपुराण में बताया गया है कि जो भी भक्त नर्मदा नदी में स्नान करता है और ओंकारेश्वर-ममलेश्वर के दर्शन करता है, उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा और लाभ
🌿 ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से भक्तों को—
✔ सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
✔ आयु, धन, और समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।
✔ मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।
✔ शिवलोक की प्राप्ति होती है।
12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी: पञ्चम ज्योतिर्लिंग: श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। यह भगवान शिव का दिव्य धाम माना जाता है, जो न सिर्फ धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग समुद्र तल से 12,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, और यह पूरी तरह से हिमालय के बर्फीले पहाड़ों से घिरा हुआ है। इस पवित्र धाम के दर्शन के लिए भक्तों को कठिन यात्रा करनी पड़ती है, लेकिन शिवभक्तों का अटूट विश्वास और आस्था उन्हें यहाँ तक ले ही आती है।
आइए जानते हैं श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की अद्भुत और पौराणिक कथा।
केदारनाथ धाम का महत्त्व
🔹 पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित यह धाम भक्तों को धर्म और आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होने का संदेश देता है।
🔹 यह मंदिर सिर्फ 6 महीने (अप्रैल से नवंबर) तक ही खुला रहता है, क्योंकि सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण यह क्षेत्र पूरी तरह से बर्फ से ढक जाता है।
🔹 ऐसा कहा जाता है कि इस पवित्र भूमि पर स्नान करने से गंगा का पवित्र जल भी स्वच्छ और दिव्य हो जाता है, क्योंकि यह भगवान केदारनाथ के चरणों का स्पर्श कर चुका होता है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ पांडवों का पश्चाताप और भगवान शिव की लीला
महाभारत युद्ध के बाद पांडवों को यह अहसास हुआ कि उन्होंने अपने ही भाइयों (कौरवों) का संहार किया है। युद्ध में हुए नरसंहार और ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की शरण लेने का निर्णय किया।
लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। इसलिए वे गुप्तकाशी (Guptkashi) में छिप गए।
जब पांडव वहाँ पहुँचे, तब भगवान शिव वहाँ से नंदी (बैल) का रूप धारण कर केदारनाथ की ओर चले गए।
जब पांडव केदारनाथ पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ कई सारे बैल चर रहे थे।
परंतु भीम ने एक विशेष बैल को पहचान लिया, जो बाकी बैलों से अलग और अद्भुत था। उन्होंने समझ लिया कि यह कोई साधारण बैल नहीं, बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं।
➤ भगवान शिव का पाँच स्थानों पर प्रकट होना
भीम ने उस बैल को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन बैल अचानक भूमि के अंदर समाने लगा। भीम ने उसकी पूंछ पकड़ ली, लेकिन वह भी उसे रोक नहीं पाए।
जैसे ही बैल भूमि के अंदर समाया, भगवान शिव के शरीर के विभिन्न अंग पाँच अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए—
- केदारनाथ – भगवान शिव की पीठ (पीछे का हिस्सा) यहाँ प्रकट हुई।
- तुंगनाथ – भगवान शिव की बाहें (हाथ) यहाँ प्रकट हुईं।
- मध्यमहेश्वर – भगवान शिव का नाभि और पेट यहाँ प्रकट हुआ।
- रुद्रनाथ – भगवान शिव का मुख (चेहरा) यहाँ प्रकट हुआ।
- कल्पेश्वर – भगवान शिव का शिर (सिर) यहाँ प्रकट हुआ।
इन पाँच पवित्र स्थानों को पंचकेदार (Panch Kedar) कहा जाता है।
पांडवों ने इन पाँच स्थानों पर भगवान शिव के मंदिरों का निर्माण किया, जिससे वे अपने पापों से मुक्त हुए।
भगवान शिव ने पांडवों की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि वे केदारनाथ धाम में त्रिकोणीय (Triangle) शिवलिंग के रूप में निवास करेंगे।
केदारनाथ धाम का चमत्कारिक इतिहास
➤ 2013 की भयानक बाढ़ और चमत्कारी पत्थर
साल 2013 में केदारनाथ में भीषण बाढ़ आई, जिसमें हजारों लोग मारे गए और कई इमारतें बह गईं।
लेकिन यह भगवान शिव की महिमा ही थी कि केदारनाथ मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ।
बाढ़ के दौरान, एक विशाल पत्थर (Miraculous Boulder) पहाड़ से लुढ़कता हुआ आया और मंदिर के पीछे जाकर रुक गया।
इस पत्थर ने भयंकर जलप्रवाह को दो हिस्सों में बाँट दिया, जिससे मंदिर पूरी तरह सुरक्षित रहा।
आज भी यह “चमत्कारी शिला” (Divine Boulder) केदारनाथ मंदिर के पास देखी जा सकती है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा और लाभ
🌿 केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन से—
✔ सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
✔ जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
✔ आत्मा को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्त होता है।
✔ शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है।
12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी: छठा ज्योतिर्लिंग : श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यह पुणे से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और “भीमा शीला” के नाम से भी प्रसिद्ध है।
भगवान शिव का यह दिव्य धाम न केवल एक महान धार्मिक स्थल है, बल्कि इसे एक शक्ति और भक्ति का केंद्र भी माना जाता है।
आइए जानते हैं भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और इसकी महिमा।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का महत्त्व
🔹 सह्याद्रि पर्वतों की गोद में स्थित यह ज्योतिर्लिंग घने जंगलों और सुरम्य वादियों के बीच स्थित है।
🔹 यहाँ से भीमा नदी का उद्गम होता है, जो कृष्णा नदी से मिलती है।
🔹 यह ज्योतिर्लिंग शिवभक्तों के लिए अद्वितीय स्थान है, जहाँ दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ भीम नामक असुर का जन्म और प्रतिशोध
प्राचीन काल में भीम नामक एक महान राक्षस था। वह महाबली रावण के छोटे भाई कुम्भकर्ण का पुत्र था।
लेकिन भीम ने अपने पिता को कभी नहीं देखा था, क्योंकि जब वह छोटा था, तब कुम्भकर्ण को भगवान श्रीराम ने युद्ध में मार दिया था।
जब भीम बड़ा हुआ, तो उसकी माता ने उसे बताया कि उसके पिता को भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम ने मार दिया था।
यह सुनकर भीम बहुत क्रोधित हुआ और उसने भगवान विष्णु से बदला लेने का संकल्प लिया।
➤ भीम की कठोर तपस्या और ब्रह्मा जी का वरदान
अपने संकल्प को पूरा करने के लिए भीम ने 1000 वर्षों तक कठोर तपस्या की।
उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे अजेय होने का वरदान दे दिया और कहा कि वह पूरी दुनिया पर राज कर सकता है।
जैसे ही भीम को यह वरदान मिला, उसने अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया।
भीम की अत्याचारी सत्ता
✔ भीम ने स्वर्ग पर आक्रमण कर इंद्र को पराजित कर दिया और सभी देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया।
✔ उसने कामरूप राज्य के शिवभक्त राजा सुधीन को बंदी बना लिया और उनके मंत्रियों व सेवकों को भी कैद कर लिया।
✔ पूरे संसार में धार्मिक कार्यों, यज्ञ, तपस्या और पूजा-पाठ पर प्रतिबंध लगा दिया।
✔ वेद, पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों का प्रचार बंद हो गया।
भीम के अत्याचार से सभी ऋषि-मुनि और देवता भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान शिव की शरण में जाकर प्रार्थना की।
भगवान शिव का प्रकट होना और भीम का संहार
भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना सुनी और कहा—
“मैं शीघ्र ही इस अत्याचारी दैत्य का अंत करूंगा।”
भीम के अत्याचार से त्रस्त लोगों ने एक पृथ्वी पर स्थापित शिवलिंग की पूजा करनी शुरू कर दी।
जब भीम ने शिवलिंग की पूजा होते देखी, तो वह क्रोधित हो गया और अपनी तलवार से शिवलिंग को नष्ट करने के लिए वार किया।
लेकिन जैसे ही उसकी तलवार शिवलिंग को छूने वाली थी, शिवलिंग से स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गए।
भगवान शिव को अपने समक्ष देखकर—
✔ सभी देवताओं और ऋषियों ने उनकी स्तुति की।
✔ भीम ने भगवान शिव से युद्ध किया, लेकिन वह महादेव के सामने टिक नहीं सका।
✔ भगवान शिव ने अपने तीव्र आक्रोश और महाबली शक्ति से भीम को समाप्त कर दिया।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना
भगवान शिव की इस अद्भुत लीला को देखकर सभी देवताओं और भक्तों ने महादेव से प्रार्थना की—
“हे प्रभु! कृपया इस स्थान पर सदा के लिए विराजमान रहें, ताकि यहाँ आने वाले भक्तों को आपकी कृपा प्राप्त हो।”
भगवान शिव ने भक्तों की प्रार्थना स्वीकार की और इस स्थान पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए विराजमान हो गए।
इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम “भीमाशंकर” पड़ा।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की महिमा और लाभ
🌿 भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से—
✔ भक्तों के सभी पापों का नाश हो जाता है।
✔ जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
✔ भगवान शिव की कृपा से सभी संकटों का अंत हो जाता है।
✔ शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी: सातवां ज्योतिर्लिंग : श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) में पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है और मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है।
आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और इसकी महिमा।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्त्व
🔹 वाराणसी (जिसे बनारस या काशी भी कहा जाता है) भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरी है।
🔹 यह स्थान न केवल हिंदू धर्म का केंद्र है, बल्कि बौद्ध धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भगवान बुद्ध ने यहीं पर अपना पहला उपदेश दिया था।
🔹 काशी को “मोक्षदायिनी नगरी” कहा जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति यहाँ प्राण त्यागता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🔹 इस मंदिर में शक्ति पीठ और ज्योतिर्लिंग दोनों का अद्भुत संगम है।
🔹 यहाँ भगवान शिव “विश्वेश्वर” के रूप में विराजमान हैं, जिसका अर्थ है— “संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी।”
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ भगवान शिव का दिव्य परीक्षण
पुराणों के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी (सृष्टिकर्ता) और भगवान विष्णु (पालनहार) के बीच यह विवाद हुआ कि उनमें से कौन अधिक श्रेष्ठ है।
इस विवाद को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने एक असीमित प्रकाश स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में प्रकट होकर दोनों की परीक्षा ली।
✔ भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) रूप धारण किया और ज्योतिर्लिंग के अंत को खोजने के लिए नीचे की ओर चले।
✔ ब्रह्मा जी हंस के रूप में ऊपर की ओर उड़ गए ताकि वे ज्योतिर्लिंग के शिखर तक पहुँच सकें।
ब्रह्मा जी का अहंकार और उनका शाप
✔ भगवान विष्णु ने ईमानदारी से हार स्वीकार की, क्योंकि उन्हें ज्योतिर्लिंग का अंत नहीं मिला।
✔ लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया और कहा कि उन्होंने ज्योतिर्लिंग का अंत देख लिया है।
✔ उन्होंने “केतकी पुष्प” को गवाह के रूप में प्रस्तुत किया।
भगवान शिव को यह छल सहन नहीं हुआ।
✔ क्रोधित होकर, उन्होंने भैरव रूप धारण किया और ब्रह्मा जी का पाँचवाँ सिर काट दिया।
✔ साथ ही, ब्रह्मा जी को शाप दिया कि उनकी पूजा पृथ्वी पर कभी नहीं होगी।
✔ दूसरी ओर, भगवान विष्णु को उनकी सत्यता और भक्ति के कारण आशीर्वाद दिया कि उनकी पूजा हर मंदिर में होगी।
जिस स्थान पर यह दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, वह स्थान काशी विश्वनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
🌟 मोक्ष प्राप्ति का स्थान: यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को पुनर्जन्म से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🌟 पवित्र गंगा का तट: यह मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है, और यहाँ गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है।
🌟 शक्ति पीठ और ज्योतिर्लिंग का संगम: यह स्थान शक्ति और शिव का अद्भुत मिलन स्थल है।
🌟 भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक: यह मंदिर सैकड़ों वर्षों से हिंदू आस्था का केंद्र बना हुआ है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा और लाभ
🚩 काशी विश्वनाथ के दर्शन करने से—
✔ सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
✔ व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का अवसर मिलता है।
✔ जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
✔ भगवान शिव की असीम कृपा से जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिलता है।
आठवां ज्योतिर्लिंग : त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा: जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश एक साथ विराजते हैं
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्रह्मगिरी पर्वत पर स्थित है। यह वही स्थान है जहाँ से गोदावरी नदी का उद्गम होता है।
इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है।
आइए जानते हैं त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और इसकी महिमा।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्त्व
🌟 गोदावरी नदी का उद्गम स्थल – त्र्यंबकेश्वर वही स्थान है जहाँ से पवित्र गोदावरी नदी बहना शुरू होती है।
🌟 तीनों देवों की उपस्थिति – यहाँ ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों एक साथ पूजित होते हैं, जो इसे अद्वितीय बनाता है।
🌟 गौतम ऋषि का तपस्थल – यही वह स्थान है जहाँ गौतम ऋषि ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था।
🌟 सभी प्रकार के दोषों की मुक्ति – इस स्थान को सभी प्रकार के पापों और दोषों से मुक्ति दिलाने वाला तीर्थ माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ गौतम ऋषि की तपस्या और जल संकट
प्राचीन काल में ब्रह्मगिरी पर्वत पर गौतम ऋषि का आश्रम था।
✔ एक समय यहाँ भयंकर सूखा पड़ा, जिससे मनुष्य, पशु-पक्षी और सभी प्राणियों को बहुत कष्ट हुआ।
✔ गौतम ऋषि ने वरुण देव (जल के देवता) की घोर तपस्या की।
✔ प्रसन्न होकर वरुण देव ने उन्हें एक ऐसा तालाब दिया, जिसमें कभी जल समाप्त नहीं होता था।
✔ गौतम ऋषि ने इस जल का उपयोग सभी की सेवा के लिए किया, जिससे वे अत्यधिक पुण्य के भागी बने।
लेकिन, अन्य ऋषियों को गौतम ऋषि की प्रसिद्धि से जलन होने लगी और उन्होंने उन्हें अपमानित करने का षड्यंत्र रचा।
➤ ऋषियों की साजिश और गौहत्या का दोष
✔ ऋषियों ने भगवान गणेश से अनुरोध किया कि वे किसी भी तरह गौतम ऋषि को बदनाम करें।
✔ गणेश जी ने पहले उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन जब वे नहीं माने, तो उन्होंने एक योजना बनाई।
✔ गणेश जी ने एक कमजोर गाय का रूप धारण किया और गौतम ऋषि के आश्रम पहुँच गए।
✔ गौतम ऋषि ने गाय को प्रेमपूर्वक चारा खिलाया, लेकिन जैसे ही उसने चारा खाया, वह वहीं तुरंत मर गई।
✔ अन्य ऋषियों ने इस पर शोर मचा दिया कि गौतम ऋषि ने गौहत्या का महापाप किया है।
गौहत्या को सबसे बड़ा पाप माना जाता है, और इससे मुक्त होने के लिए गंगा स्नान आवश्यक होता है।
➤ गौतम ऋषि की तपस्या और भगवान शिव की कृपा
✔ गौतम ऋषि ने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की।
✔ भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा।
✔ गौतम ऋषि ने प्रार्थना की कि गंगा माता इसी स्थान पर अवतरित हों, जिससे सभी को पवित्र जल प्राप्त हो।
✔ भगवान शिव ने गंगा को ब्रह्मगिरी पर्वत पर लाने की आज्ञा दी।
लेकिन गंगा जी बार-बार यहाँ से लुप्त हो जाती थीं, क्योंकि वे अकेले यहाँ नहीं रहना चाहती थीं।
➤ त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति
✔ अंततः गंगा माता ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे स्वयं यहाँ निवास करें।
✔ भगवान शिव ने गंगा जी की इच्छा पूरी करते हुए त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वहीं निवास करने का वचन दिया।
✔ तब से यह स्थान त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
यहाँ तीन छोटे-छोटे शिवलिंग (त्र्यंबक) हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
🚩 तीन देवताओं का संगम:
✔ यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का प्रतीक एक साथ पूजित होता है।
🚩 गोदावरी नदी का स्रोत:
✔ इसे “दक्षिण की गंगा” भी कहा जाता है।
✔ यहाँ स्नान करने से सभी प्रकार के पाप और दोष समाप्त हो जाते हैं।
🚩 कालसर्प दोष निवारण:
✔ यह स्थान कालसर्प दोष, पितृ दोष और ग्रह बाधा से मुक्ति दिलाने के लिए प्रसिद्ध है।
✔ यहाँ विशेष रुद्राभिषेक और कालसर्प योग पूजा कराई जाती है।
🚩 पवित्र ब्रह्मगिरी पर्वत:
✔ जहाँ गंगा जी का पहला जल धरती पर गिरा, वह ब्रह्मगिरी पर्वत अत्यंत पावन माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का लाभ
✔ इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
✔ त्र्यंबकेश्वर की पूजा से कालसर्प दोष और ग्रह पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।
✔ गोदावरी स्नान से सभी रोग और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
✔ त्र्यंबकेश्वर का जल सभी प्रकार के मानसिक और शारीरिक रोगों को दूर करने वाला माना जाता है।
नवां ज्योतिर्लिंग : वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: रावण की भक्ति और शिव की अनंत कृपा
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य के देवघर में स्थित है। इसे सिद्धपीठ भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ भक्तों की मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं।
इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी रावण और भगवान शिव की कथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्त्व
🚩 सिद्धपीठ: इसे सिद्धपीठ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
🚩 रावण द्वारा स्थापित: वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग रावण की कठोर तपस्या और शिव की कृपा का प्रतीक है।
🚩 कामना लिंग: इसे “कामना लिंग” भी कहा जाता है, क्योंकि जो भी सच्चे मन से शिव की आराधना करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है।
🚩 बाबा बैद्यनाथ धाम: यह बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख स्थान रखता है और यहाँ श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करने आते हैं।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ रावण की कठोर तपस्या
✔ त्रेतायुग में, लंका का राजा रावण भगवान शिव का परम भक्त था।
✔ उसने हिमालय पर्वत पर कठिन तपस्या की और अपने नौ सिरों की बलि भगवान शिव को अर्पित कर दी।
✔ जैसे ही वह दसवाँ सिर काटने वाला था, भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।
✔ रावण ने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे स्वयं लंका चलकर वहाँ निवास करें।
भगवान शिव ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर “कामना लिंग” प्रदान किया, लेकिन एक शर्त रखी—
“रावण, यदि तुमने इस शिवलिंग को मार्ग में कहीं भी रख दिया, तो यह वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो जाएगा और फिर इसे हिलाया नहीं जा सकेगा।”
➤ देवताओं की चिंता और विष्णु की युक्ति
✔ जब भगवान शिव कैलाश से लंका जाने के लिए रावण के साथ चले, तो यह देखकर देवता चिंतित हो गए।
✔ वे जानते थे कि यदि शिवलिंग लंका पहुँच गया, तो रावण अमरत्व प्राप्त कर लेगा और उसे पराजित करना असंभव हो जाएगा।
✔ इसलिए भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई।
✔ विष्णु जी ने वरुण देव (जल के देवता) को रावण के पेट में प्रवेश करने को कहा।
✔ इससे रावण को तीव्र मूत्र त्याग की आवश्यकता महसूस हुई।
✔ रावण ने सोचा कि वह कुछ समय के लिए शिवलिंग किसी अन्य को पकड़वा सकता है।
➤ शिवलिंग का पृथ्वी पर स्थायी रूप से स्थापित होना
✔ रावण ने मार्ग में एक ग्वाले (गोप) का रूप धरे भगवान विष्णु को शिवलिंग सौंप दिया और कहा कि वह इसे थोड़ी देर तक पकड़े रखे।
✔ लेकिन भगवान विष्णु ने योजना के अनुसार लिंग को भूमि पर रख दिया।
✔ जब रावण लौटा, तो उसने लिंग को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वह उसे हिला नहीं सका।
✔ क्रोधित होकर रावण ने अपनी शक्ति से शिवलिंग को दबाने की कोशिश की, जिससे लिंग का ऊपरी भाग थोड़ा दब गया।
➤ देवताओं ने की शिवलिंग की पूजा
✔ जब देवताओं ने देखा कि शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया है, तो उन्होंने मिलकर उसकी पूजा-अर्चना की।
✔ भगवान ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं ने इस स्थान को “वैद्यनाथ” नाम दिया।
✔ भगवान शिव ने घोषणा की कि जो भी श्रद्धा और भक्ति से यहाँ पूजा करेगा, उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होंगी।
✔ तब से यह स्थान “वैद्यनाथ धाम” और “कामना लिंग” के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
🚩 कामना लिंग:
✔ इस ज्योतिर्लिंग की उपासना करने से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
✔ विशेषकर स्वास्थ्य, धन, सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इसकी पूजा की जाती है।
🚩 रावण की भक्ति का प्रमाण:
✔ यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जिसे राक्षस राज रावण ने स्वयं भगवान शिव से प्राप्त किया था।
✔ यह रावण की कठोर तपस्या और शिव की कृपा का प्रतीक है।
🚩 श्रावण मास की विशेष पूजा:
✔ श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु गंगा जल लेकर बाबा बैद्यनाथ को अर्पित करने आते हैं।
✔ यहाँ विशेष रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और कालसर्प दोष निवारण पूजा कराई जाती है।
🚩 शिव की दिव्य चिकित्सा शक्ति:
✔ “वैद्यनाथ” नाम का अर्थ है “वैद्य (चिकित्सक) के रूप में भगवान शिव”।
✔ इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन का लाभ
✔ सभी प्रकार के रोग और कष्ट समाप्त होते हैं।
✔ कामना लिंग की पूजा से इच्छाएँ पूरी होती हैं।
✔ शिव कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
✔ रुद्राभिषेक से कालसर्प दोष और ग्रह बाधाएँ समाप्त होती हैं।
दसवां ज्योतिर्लिंग : नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: भक्तों की रक्षा करने वाले भगवान शिव
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है। यह शिवभक्तों की रक्षा और अधर्म के नाश का प्रतीक है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व
🚩 भक्तों की रक्षा करने वाले भगवान शिव:
✔ यह ज्योतिर्लिंग शिवजी की करुणा और भक्तों की रक्षा की शक्ति को दर्शाता है।
🚩 असुरों के संहार का प्रतीक:
✔ नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा एक असुर (राक्षस) के अत्याचार और शिवजी द्वारा भक्तों की मुक्ति से जुड़ी है।
🚩 सर्व बाधा नाशक शिवलिंग:
✔ यह माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएँ और शत्रुता समाप्त हो जाती है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ असुर दारुक का अत्याचार
✔ बहुत समय पहले दारुक नामक एक राक्षस हुआ करता था, जो अपनी मायावी शक्तियों से लोगों को प्रताड़ित करता था।
✔ उसने “दारुक वन” नामक एक नगर समुद्र के भीतर बना लिया, जहाँ सांपों और राक्षसों का राज्य था।
✔ दारुक ने सभी ऋषि-मुनियों और शिवभक्तों को बंदी बना लिया और उन्हें वहाँ कष्ट देने लगा।
➤ शिवभक्त सुप्रियो की भक्ति और शिव का प्रकट होना
✔ उन बंदी बनाए गए लोगों में एक महान शिवभक्त सुप्रियो भी था।
✔ सुप्रियो ने अखंड शिव मंत्र का जाप करना शुरू किया और शिवजी को पुकारा।
✔ शिव जी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं वहाँ प्रकट हुए।
✔ शिव जी के दर्शन होते ही उनकी शक्ति से सभी राक्षस भस्म हो गए और बंदी भक्त मुक्त हो गए।
➤ नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना
✔ सुप्रियो और अन्य भक्तों ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे हमेशा यहाँ निवास करें।
✔ शिवजी ने भक्तों की इच्छा को स्वीकार किया और “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग” के रूप में यहाँ स्थायी रूप से विराजमान हो गए।
✔ इस तरह यह स्थान “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग” के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का लाभ
🚩 शत्रु बाधा से मुक्ति:
✔ जो व्यक्ति शत्रु बाधा या कानूनी मामलों में फँसा हो, उसे यहाँ पूजा करने से रक्षा और विजय प्राप्त होती है।
🚩 सर्प दोष और कालसर्प दोष निवारण:
✔ इस ज्योतिर्लिंग की पूजा सांपों के भय, राहु-केतु दोष और कालसर्प दोष निवारण के लिए की जाती है।
🚩 भक्तों की रक्षा करने वाला ज्योतिर्लिंग:
✔ जो भी सच्चे मन से शिव जी का स्मरण करता है, उसे किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता।
ग्यारवाँ ज्योतिर्लिंग : रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग: भगवान राम द्वारा स्थापित पवित्र शिवलिंग
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग समुद्र के किनारे स्थित रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है और इसे भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थानों में से एक माना जाता है।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग का महत्व
🚩 भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग:
✔ यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जिसे स्वयं भगवान राम ने स्थापित किया था।
🚩 सभी ज्योतिर्लिंगों में विशेष स्थान:
✔ यह ‘चार धाम’ तीर्थ यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और 12 ज्योतिर्लिंगों में इसका विशेष स्थान है।
🚩 मुक्ति प्रदान करने वाला शिवलिंग:
✔ इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🚩 रामायण काल से जुड़ा स्थान:
✔ यह वही स्थान है, जहां से भगवान राम ने श्रीलंका जाने के लिए ‘राम सेतु’ (आदम ब्रिज) का निर्माण किया था।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ रावण वध के बाद राम ने शिव की आराधना की
✔ रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण का वध किया था।
✔ रावण एक महान शिवभक्त और ब्राह्मण कुल में जन्मा राक्षस था।
✔ रावण का वध करने के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या दोष लगा।
✔ इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने भगवान शिव की आराधना करने का निर्णय लिया।
✔ उन्होंने रामेश्वरम में एक शिवलिंग स्थापित करने का निश्चय किया।
➤ माता सीता द्वारा बनाए गए शिवलिंग की पूजा
✔ भगवान राम ने हनुमानजी को हिमालय से एक दिव्य शिवलिंग लाने भेजा।
✔ लेकिन हनुमानजी को आने में देर हो गई, जिससे पूजा में विलंब हो रहा था।
✔ तब माता सीता ने समुद्र तट की रेत से एक शिवलिंग बनाया।
✔ भगवान राम ने उसी शिवलिंग की पूजा करके ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाई।
✔ जब हनुमानजी हिमालय से लाया हुआ शिवलिंग लेकर पहुंचे, तब भगवान राम ने दोनों शिवलिंगों को प्रतिष्ठित किया।
✔ आज भी यह दोनों शिवलिंग रामेश्वरम मंदिर में विद्यमान हैं।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
🚩 भव्य मंदिर और विशाल गलियारा:
✔ रामेश्वरम मंदिर में 1212 स्तंभों वाला विश्व का सबसे लंबा गलियारा है।
✔ इस गलियारे की अद्भुत नक्काशी और वास्तुकला इसे विशेष बनाती है।
🚩 24 पवित्र कुंड:
✔ मंदिर परिसर में 24 पवित्र जल कुंड हैं, जिनमें स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।
✔ माना जाता है कि इन कुंडों का निर्माण भगवान राम ने अपनी सेना की प्यास बुझाने के लिए किया था।
🚩 राम सेतु (आदम ब्रिज):
✔ यह वही स्थान है, जहाँ से भगवान राम ने श्रीलंका जाने के लिए ‘राम सेतु’ का निर्माण किया था।
🚩 चार धाम यात्रा का हिस्सा:
✔ रामेश्वरम चार धाम तीर्थ यात्रा (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) का एक प्रमुख धाम है।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के दर्शन का लाभ
🚩 पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति:
✔ रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्ति होती है।
🚩 संकटों से मुक्ति:
✔ यदि कोई व्यक्ति कठिनाइयों और मानसिक पीड़ा से गुजर रहा है, तो उसे यहाँ दर्शन करने से समाधान मिलता है।
🚩 ब्रह्महत्या दोष और पितृ दोष निवारण:
✔ इस स्थान पर पूजा करने से पितृ दोष, कालसर्प दोष और अन्य ग्रह बाधाओं का निवारण होता है।
🚩 तीर्थ यात्रा का महत्त्व:
✔ यह ज्योतिर्लिंग तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत शुभ और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाला माना जाता है।
बारहवां ज्योतिर्लिंग : घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: करुणा के स्वामी भगवान शिव का पवित्र धाम
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह बारहवाँ और अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस मंदिर के पास ही विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाएँ स्थित हैं।
💠 शब्द अर्थ: ‘घृष्णेश्वर’ का अर्थ “करुणा के स्वामी” होता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
➤ घुष्मा की भक्ति और भगवान शिव का वरदान
✔ प्राचीन काल में “शिवालय” नामक गाँव में सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था।
✔ सुदेहा बांझ थी, जिसके कारण उसे संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी।
✔ सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुष्मा का विवाह अपने पति से करा दिया, ताकि उन्हें संतान की प्राप्ति हो सके।
✔ घुष्मा भगवान शिव की परम भक्त थीं।
✔ वे रोज 1001 शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती थीं और जल में प्रवाहित कर देती थीं।
✔ उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें एक पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।
➤ सुदेहा की ईर्ष्या और घुष्मा की परीक्षा
✔ समय बीतने के साथ सुदेहा को अपनी बहन से ईर्ष्या होने लगी।
✔ एक रात सुदेहा ने ईर्ष्या में आकर घुष्मा के पुत्र की हत्या कर दी और शव को उसी सरोवर में फेंक दिया, जहाँ घुष्मा शिवलिंग प्रवाहित करती थीं।
✔ सुबह घुष्मा ने अपनी साधना के अनुसार शिवलिंगों को जल में प्रवाहित किया।
✔ तभी उन्होंने देखा कि उनका पुत्र जल से बाहर आकर उनकी ओर बढ़ रहा है।
✔ यह देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।
➤ भगवान शिव का प्रकट होना और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना
✔ तभी भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और घुष्मा से वरदान मांगने को कहा।
✔ घुष्मा ने भगवान शिव से अपनी बहन सुदेहा को क्षमा करने का अनुरोध किया।
✔ भगवान शिव घुष्मा की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और हमेशा के लिए यहाँ विराजमान रहने का वचन दिया।
✔ तभी से भगवान शिव “घृष्णेश्वर” (करुणा के स्वामी) के रूप में इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
🚩 विशेष वास्तुकला:
✔ यह मंदिर मराठा शासकों द्वारा निर्मित किया गया था।
✔ इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
🚩 एलोरा गुफाओं के पास स्थित:
✔ घृष्णेश्वर मंदिर विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं के पास स्थित है।
✔ यह ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के पास स्थित है।
🚩 शिवलिंग का विशेष पूजन:
✔ यहाँ शिवलिंग पर जल चढ़ाने की विशेष परंपरा है।
✔ भक्तों को शिवलिंग को स्पर्श करने और पूजन करने की अनुमति है।
🚩 भगवान शिव को घुष्मेश्वर भी कहा जाता है:
✔ भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव को “घृष्णेश्वर” या “घुष्मेश्वर” कहा जाता है।
🚩 करुणा और भक्ति का प्रतीक:
✔ यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की करुणा, क्षमा और भक्तों के प्रति अटूट प्रेम का प्रतीक है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का लाभ
🌟 शिव भक्ति को पूर्ण करने वाला स्थान:
✔ घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग शिव भक्ति को सिद्ध करने वाला पवित्र स्थान है।
🌟 संतान प्राप्ति का आशीर्वाद:
✔ जिन दंपतियों को संतान सुख की इच्छा हो, वे यहाँ श्रद्धा से पूजा करें।
🌟 ईर्ष्या और क्रोध से मुक्ति:
✔ इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से ईर्ष्या, क्रोध और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
🌟 अंतिम ज्योतिर्लिंग के दर्शन का पुण्य:
✔ यह 12वाँ और अंतिम ज्योतिर्लिंग है, जिसे देखने से समस्त 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।
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